रायपुर। जैन धर्म के प्रभावक, तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण जी का सोमवार को दुर्ग जिला मुख्यालय में पावन पदार्पण हुआ। भिलाई के पोरवाल प्रेक्षा भवन से मंगल विहार कर श्रद्धालूओं के निवेदन पर आचार्य श्री ने कई जगह पधार कर पावन आशीर्वाद प्रदान किया। प्रथम बार दुर्ग में आचार्य श्री महाश्रमणजी के आगमन पर जैन-अजैन हर कोई बडे़ हर्षोल्लास से आचार्यश्री का स्वागत कर रहे था। हर ओर गुंजायमान होते जय घोषों से मानों पुरा दुर्ग आज महाश्रमण मय बन गया। मुस्लिम समाज, सिंधी समाज, सिक्ख समाज, जय महाकाल जन्म कल्याण समिति, जैन सोशल ग्रुप, टीम ए.आर.सी.सी. माॅर्निग वाॅक जैसी कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अहिंसा यात्रा प्रणेता का स्वागत किया।

इस अवसर पर विधायक अरूण बोहरा ने भी शांतिदूत का अभिनंदन किया। एक स्थान पर स्थानकवासी संप्रदाय के सतीश मुनि जी आदि ने भी आचार्यश्री का स्वागत किया। शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी लगभग 8 कि.मी. विहार कर नरेन्द्र श्रीश्रीमाल के निवास पर दो दिवसीय प्रवास हेतु पधारे। आज पूज्य गुरुदेव की सन्निधि में नवमे आचार्य श्री तुलसी के शुरू किये गए अणुव्रत का 72 वां स्थापना दिवस भी मनाया गया।

अणुव्रत किसी सम्प्रदाय का नहीं

अणुव्रत स्थापना दिवस के संदर्भ में आचार्य महाश्रमण जी ने कहा कि अहिंसा एक ऐसा धर्म है जो किसी भी देश के निवासी के लिए, किसी भी धर्म संप्रदाय को मानने वाले के लिए श्रेयस्कर होता है, हितकारी होता है 72 वर्ष पूर्व आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का शुभांरम्भ किया। अणुव्रत में अहिंसा, नैतिकता की ही बात है। छोटें-छोटें नियमो की आचार संहिता अणुव्रत में निर्दिष्ट है। गंगा में नहाने की बात आती है यह अणुव्रत नैतिकता की गंगा है। अणुव्रतों को अपनाने से स्वयं पर अनुशासन होता है, संयम होता है। इसके लिए जैन होना आवश्यक नहीं अणुव्रत असांप्रदायिक धर्म है। मेरी दृष्टि में तो एक नास्तिक भी अणुव्रती बन सकता है। अणुव्रत जीवन को अच्छा बनाता है। अणुव्रत का एक नियम है कि मैं किसी भी निरपराध प्राणी की हत्या नहीं करूंगा। यह अहिंसा की बात है कि वर्ण, जाति, धर्म आदि को लेकर व्यक्ति हिंसा न करे, कोई अराजक प्रवृत्ति न करे। हिंसा जीवन को पतन की और ले जाती है और अहिंसा उत्थान की ओर।

पूज्यवर ने आगे कहा कि परमपूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञजी सन् 2002 में अहमदाबाद पधारे उस समय वहां हिंसा, अशांति का माहौल था। ऐसे में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अहिंसा का संदेश देकर शांति का महनीय कार्य किया था। हम ध्यान दे हिंसा दुखों की जननी है। जीवन में अहिंसा, अणुव्रतों के संदेश हो। अणुव्रत व्यक्ति को जीवन में ईमानदारी की प्रेरणा देता है। नशा मुक्तता का संदेश देता है। व्यक्ति बुराईयों का त्याग कर अणुव्रत के द्वारा जीवन को अच्छा बनाये यह जरूरी है। गुरुदेव की प्रेरणा से उपस्थित धर्मसभा में दुर्ग की जनता ने अहिंसा यात्रा के सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया।

कार्यक्रम में आचार्य श्री का स्वागत करते हुए राज्यसभा सांसद सरोज पांडे ने कहा कि मेरा सौभाग्य है जो आप जैसे महान संतों के मुझे दर्शन प्राप्त हुए। अहिंसा यात्रा के यह संकल्प समाज को एक सही दिशा देंगे। दुर्ग शहर पर आपका आशीर्वाद सदा बना रहे मैं यह काम ना करती हूं।