पुरुषोत्तम पात्र. गरियाबंद के दर्रीपारा निवासी जैतूराम कमार (राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र) द्वारा 15 दिन पेड़ के नीचे गुजर बसर करने पर मजबूर होने की घटना ने जिला प्रशासन और स्थानीय नेताओं की कार्यशीली को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. हालांकि कल यानि मंगलवार को कुछ अधिकारियों और नेताओं ने मौके पर पहुंचकर पीड़ित परिवार को एक सरकारी गोदाम में आश्रय दिलाकर अपनी लापरवाही और नाकामियों पर पर्दा डालने का काम जरूर किया है.

 मामले की सच्चाई ये है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र आदिवासी कमार जनजाति के जैतूराम को जीवन में अबतक एक भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला. योजना का लाभ मिलना तो दूर उनका और उनके परिवार का आधारकार्ड भी नहीं बन पाया है. राशनकार्ड, पीएम आवास, वन अधिकार पट्टा और स्मार्टकार्ड की सुविधा मिलना तो दूर की बात है.

दुखद बात तो यह है कि पीड़ित (राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र) परिवार को अपना गुजर बसर करने के लिए अपनी आधा एकड़ से कुछ कम जमीन भी महज 1600 रुपये में बेचनी पड़ी. घासफूंस से बनी जिस झोपड़ी में वह अपने परिवार के साथ गुजर बसर कर रहा था 15 दिन पहले उसमे भी आग लग गयी और उसे अपने परिवार के साथ पेड़ के नीचे अपना आशियाना बनाने पर मजबूर होना पड़ा.

मामले में अहम बात ये है कि कोई भी जिम्मेदार अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है. फिर चाहे वो गांव की सरपंच हो या पंचायत सचिव. हालांकि कलेक्टर ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए नियमों के मुताबिक पूरी तरह मदद करने की बात कही है.

यहां यह बताना लाजमी होगा कि आदिवासियों और आदिवासी जनजातियों के हितग्राहियों को सरकारी की अधिकांश योजनाओं का लाभ पहुंचाना सरकार के आदिम जाति कल्याण विभाग का कार्यं है. गरियाबंद जिले में भी यह विभाग कार्यरत है. और एक सहायक आयुक्त स्तर के अधिकारी इसकी कमान संभाल रहे है.

इन्ही सहायक आयुक्त ने कल दर्रीपारा पहुंचकर जैतूराम को पेड़ के नीचे से एक गोदाम में शिफ्ट किया है. यदि उक्त अधिकारी ने अपने कार्यकाल के दौरान समय निकाल कर दर्रीपारा का दौरा किया होता और जैतूराम को योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिल पा रहा है यह जानने की कोशिश की होती तो आज जैतूराम को ये दिन ना देखने पड़ते. यही बात उन स्थानीय नेताओं पर भी बराबर लागू होती है जो अपने भाषणों ने जनता की सेवा करने और खुद को जनहितैषी होने का दावा करते है.