गुरु बिना ज्ञान ना होई- शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षक बंधुओं को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं. मैं आज जिस मुकाम पर हूं, उसमें निश्चित रूप से मेरे शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान है. वैसे मेरा सभी शिक्षकों के प्रति आदर एवम स्नेह है, लेकिन मैं उनको कभी नहीं भूल सकता, जिन्होंने मेरा नाम पहली बार स्कूल में दर्ज किया. वो हैं श्री बाल कृष्ण जी. आज भी जब मैं अपने बचपन को याद करता हूं, तो उनका चेहरा मेरे सामने सबसे पहले आता है. उनका स्कूल एवम विधार्थियों के प्रति जो अपनत्व था वो आज भी मेरे लिए मार्ग दर्शक का काम करता है. अलग अलग स्कूलों में और भी शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला.

मुझे वो शिक्षक भी याद आते है जो कुछ सिखाने के लिए मेरे द्वारा गलती करने पर भी प्यार से बोलते थे कि एक बार और कोशिश करो,
लेकिन मैं उनको भी नहीं भूल पाता हूं जो मेरे द्वारा सही उत्तर देने पर भी सबके सामने लज्जित करने में खुशी महसूस करते थे. मुझे निरुत्साहित करते थे. मुझे यह भी याद आता है कि कैसे एक शिक्षक अपने प्रिंसिपल के रिश्तेदार को टॉप करने वाले बच्चे से आगे निकालने उसके marks बढ़ा देता है और प्रैक्टिकल में शत प्रतिशत मार्क्स भी दिलाता है, लेकिन मैं उस शिक्षक का नाम याद आने से भावुक हो जाता हूं, जिसने हमेशा उत्साह बढ़ाया था, लेकिन उसी क्षण यह याद करके की वो भी एक शिक्षक ही थे, जिन्होंने मुझे इंटरव्यू में जाने से रोकने 8 घंटे तक अपने चेंबर के बाहर इंतजार करवाने के बाद दस्तावेज दिए जब आपके पास मुख्यालय पहुंचने का कोई साधन ही उपलब्ध न हो.

उसी क्षण यह भी याद आता है कि वो शिक्षक भी कितने महान थे जो बोले बेटा चिंता न करना मैं कल इंटरव्यू के समय वहीं मिलूंगा.
मुझे वो शिक्षक भी याद आते है, जिन्होंने मुझे अन्य सेवा में जाने के लिए सभी औचारिकताएं पूरी होने के बाद भी कार्यमुक्त करने से मना कर दिए, लेकिन मैं तब भावुक हो जाता हूं जब दूसरा बोलता है कि चिंता ना करो दोपहर बाद उनका चार्ज मुझे मिल जाएगा और मैं तुम्हारे ही आदेश पर पहला हस्ताक्षर करूंगा. मै उन सभी शिक्षकों को आभार व्यक्त करता हूं और नमन करता हूं, जिन्होंने मुझे यह सबक सिखाया की जीवन में क्या नहीं करना चाहिए.

सभी शिक्षक प्रयास करते हैं कि उनके शिष्य अच्छा रिजल्ट लाए । उनका, स्कूल एवम परिवार का नाम रोशन करे। और वो ही उसी तरह से मेहनत करते है एवम् करवाते भी है. मेरा मानना है कि विद्यार्थी अपने शिक्षक का ही अनुसरण सबसे ज्यादा करते हैं. इसलिए शिक्षकों पर यह नैतिक दबाव रहता है कि वो बच्चों के सामने उच्च आदर्श प्रस्तुत करें, जिस पर बहुत से शिक्षक खरे उतरते हैं लेकिन कुछ शिक्षक मानवीय दुर्गुणों से अछूते नहीं रह पाते हैं. विद्यार्थी अपने सभी शिक्षकों को पैनी नजर से देखता हैं एवम् जीवन में उतारता भी है.

जब विद्यार्थी अपने कैरियर में आगे बढ़ता है और मंजिल पर पहुंचने के बाद वह अपने अतीत का आत्म अवलोकन करता है. तब वह उन शिक्षकों को भी याद करता है, जिनसे उसने बहुत कुछ सीखा है साथ ही वह उन शिक्षकों को भी नहीं भूल पाता जिन्होंने एक शिक्षक की गरिमा के खिलाफ व्यवहार किया था.

इसलिए शिक्षक पर यह जिम्मेदारी आ जाती है कि वो एक पारदर्शी, अनुशासित और अच्छे संस्कार बच्चों को दें. उनको बच्चों का मूल्यांकन उनकी योग्यता और प्रतिभा के आधार पर करना चाहिए न कि किसी प्रकार के पक्षपात से, क्योंकि यदि उस विद्यार्थी में प्रतिभा एवम क्षमता है तो वो निश्चित रूप से आगे बढ़कर सफल हो जाएगा, लेकिन यदि उसके साथ किसी भी शिक्षक ने किसी भी आधार पर पक्षपात किया था तो वह उसको कभी नहीं भूल पाता. उसके मन मस्ति्क पर उनके प्रति वो सम्मान नहीं रहता जो पक्षपात रहित थे.

शिक्षकों को चाहिए कि जाति, धर्म ,वर्ग एवम विचारधारा से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण के लिए जिन तत्वों की जरूरत है, वह बच्चों को दे.
बच्चों एवं उनके अभिभावकों से अपेक्षा है कि वह अपने शिक्षकों का सम्मान करें. उनसे ज्यादा से ज्यादा सीखने की कोशिश करें.
शिक्षक विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में, राष्ट्र के नवनिर्माण में जैसी भूमिका किसी शिक्षक की होती है वैसी किसी की नहीं होती हैं.
यह सत्य है कि संसार में जितने महापुरुष ,संत एवं महान व्यक्तित्व हुए हैं उनका कोई न कोई गुरु अवश्य होता है. चाहे वह क्षेत्र विद्या का हो, चाहे संगीत का, खेल का, राजनीतिक का ,साहित्य का या फिर कला का.

हर क्षेत्र में यश एवं कीर्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति का कोई न कोई गुरु अवश्य होता है।इसीलिए कहा गया है ‘बिना गुरु ज्ञान ना होई ”
कुम्हार रूपी गुरु शिष्य रूपी घड़े को अपने शिक्षा एवं संस्कारों के माध्यम से घटता है एवं नया आकार प्रदान करता. शिक्षक अंधकार का नाश करने वाला अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करता है. उत्तम संस्कारों का बीजारोपण करता है. साथ ही विद्यार्थियों में उच्च चारित्रिक गुणों के विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय भावना का विकास भी करता है. शिक्षक ही ज्ञान का प्रकाश संपूर्ण संसार में आलोकित करता है. अपने दिए हुए ज्ञान को विद्यार्थियों में पाकर गदगद हो उठता है, अत्यंत गौरवान्वित होता है .

लेखक- रतन लाल डांगी

IG बिलासपुर और सरगुजा रेंज
 छत्तीसगढ़

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