बिंदेश पात्र. नारायणपुर के सीएएफ 16 वीं बटालियन के कांस्टेबल ने पुत्र मोह में अपनी बीवी के साथ जो किया वो शर्मसार करने वाला है. पढ़े ये खबर-(बड़ी खबर: हाई कोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता को दी गर्भपात की इजाजत, भ्रूण के DNA को सुरक्षित रखने के निर्देश)
पति की इस शर्मसार करने वाली करतूत के बाद पत्नी नारायणपुर के जिला अस्पताल में पिछले 5 दिनों से भर्ती है और पत्नी ने अपनी आप-बीती न्यूज 24 (मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़) और लल्लूराम डॉट कॉम को बताकर पति के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई है.
आप पीड़िता की जुबानी ही सुने उसके पति ने क्या किया… (पढ़े पूरी खबर, गर्भपात को लेकर क्या कहता है कानून)
गर्भपात कारित करना (धारा-312)
भारतीय दंड संहिता की धारा 312 गर्भपात कारित करने के संबंध में उल्लेख कर रही है. इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री की स्वेच्छा होते हुए उसका गर्भपात कारित है जबकि ऐसे गर्भधारण से उस स्त्री के जीवन को कोई संकट नहीं हो इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. गर्भवती स्त्री की सहमति से गर्भपात कारित करना इस धारा में संव्यवहार किया गया है. इस धारा के अंतर्गत अपराध में निम्न दो तत्व समाहित किए गए हैं. पहला गर्भवती स्त्री का स्वेच्छा से गर्भ कारित करना, दूसरा ऐसा गर्भपात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सदभावनापूर्वक न किया जाना.
धारा के भाव बोध से समझा जा सकता है कि गर्भपात केवल स्त्री के जीवन बचाने के उद्देश्य से ही किया जा सकता है अन्यथा नहीं किया जा सकता. यदि गर्भपात से किसी स्त्री के जीवन को खतरा है इस स्थिति में गर्भपात किया जा सकता है. भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के अंतर्गत गर्भपात शब्द की परिभाषा तो नहीं दी गई है परंतु गर्भपात शब्द का तात्पर्य गर्भधारण के पश्चात भ्रूण का गर्भाशय में पूर्ण अवधि प्राप्त करने के पूर्व निकाला जाना है. गर्भवती स्त्री का तात्पर्य है जिसने गर्भधारण किया हो, यह आवश्यक नहीं है कि उस स्त्री को स्पंदन प्रारंभ हो गया हो अथवा भ्रूण ने अपना आकार विकसित कर लिया हो. सामान्य रूप से गर्भधारण करने के चार पांच माह बाद महिला स्पंदन गर्भा हो जाती है.
इस धारा के अंतर्गत यदि गर्भवती स्त्री को जीवन बचाने के प्रयोजन से सदभावनापूर्वक गर्भपात कारित किया जाता है तो इस स्थिति में किसी अपराध की संरचना नहीं होती, इसका उल्लेख मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 में किया गया है . इस अधिनियम के अंतर्गत दी गई परिस्थितियों में ही गर्भपात की अनुमति प्रदान की गई है, यदि इस अधिनियम के अंतर्गत गर्भपात कारित किया जाता है तो धारा 312 के अंतर्गत वह अपराध नहीं माना जाएगा. इस अधिनियम के अंतर्गत गर्भपात कारित करने की एक समयावधि है, उस समय अवधि के बीत जाने के बाद किसी स्त्री का उसकी इच्छा से भी गर्भपात नहीं किया जा सकता. यदि इच्छा से भी गर्भपात किया जाएगा तब भी धारा 312 के अंतर्गत अपराध बन जाएगा. इस धारा के अनुसार दंड दो प्रकार से दिया जाता है पहला प्रकार वह है कि यदि किसी स्त्री में स्पंदन प्रारंभ नहीं हुआ है तथा 4, 5 महीने नहीं बीते हैं और गर्भपात कर दिया जाता है. इसमें 3 वर्ष के दंड का निर्धारण किया गया है और यदि किसी स्त्री में स्पंदन प्रारंभ हो जाता है और उसका गर्भपात किया जाता है तथा ऐसा गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के अंतर्गत नहीं किया गया है तो 7 वर्ष तक के दंड का निर्धारण इस धारा में किया गया है. इस धारा के अंतर्गत गर्भपात करने वाला व्यक्ति तथा जिस स्त्री का गर्भपात किया गया है वह दोनों आरोपी बनाए जाते हैं.
स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात कारित करना- (धारा-313)
भारतीय दंड संहिता की धारा 313 किसी स्त्री की सहमति के बिना उसका गर्भपात कारित करने के संबंध में उल्लेख कर रही है. इस धारा के अंतर्गत केवल उस व्यक्ति को ही दंडित किया जा सकता है जो किसी स्त्री का गर्भपात कारित करता है जबकि धारा 312 के अंतर्गत उसके साथ-साथ स्त्री को भी दंडित किया जा सकता है.
कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती है कि स्त्री को बताया नहीं जाता तथा उसका गर्भपात कारित कर दिया जाता है. जैसे कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी महिला के साथ में कोई अवैध संबंध बना लिए गए तथा अवैध संबंधों के परिणामस्वरूप महिला गर्भवती हो गई, अब महिलाओं शिशु को जन्म देना चाहती है परंतु उस व्यक्ति द्वारा द्वेषपूर्ण तरीके से स्त्री का गर्भपात करा दिया जाता है. इस प्रकार के प्रकरण में धारा 313 की सहायता ली जाती है. 1987 के केरल के एक प्रकरण में कुछ इस प्रकार के ही तथ्य सामने आए हैं. इस मामले में गर्भपात किसी स्त्री की सहमति के बिना कराया गया, एक व्यक्ति किसी स्त्री को गर्भपात के लिए चिकित्सक के पास ले गया और वह स्त्री चिकित्सक के समक्ष अपने आप को गर्भपात के लिए समर्पित कर देती है. तब ऐसे व्यक्ति को इस धारा के अंतर्गत तब तक दोषी घोषित नहीं ठहराया जा सकता जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वह व्यक्ति उस स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध चिकित्सक के पास ले गया था और उसका गर्भपात करवाया.
यहां पर स्त्री की इच्छा को सिद्ध किया जाना आवश्यक है, यदि इच्छा के विरुद्ध गर्भपात पारित कराया गया है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 313 ऐसी स्थिति में 10 वर्ष तक के कारावास के दंड का निर्धारण करती है.
गर्भपात करने के आशय से किए गए कार्य द्वारा मृत्यु होना- (धारा-314)
जैसा कि पूर्व की धाराओं में यह निर्धारित हो चुका है कि गर्भपात का कारित करना भारत राज्य के अंतर्गत दंडनीय अपराध है.भारतीय दंड संहिता की धारा 312 गर्भपात कारित करने को अपराध करार देती है तथा धारा 313 इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना करने पर दंडनीय अपराध करार देती है. अब धारा 314 इस प्रकार के गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्य को जिसके परिणामस्वरूप स्त्री की मृत्यु हो जाए दंडनीय अपराध करार देती है.
गर्भपात दो प्रकार से किया जाता है पहला प्रकार है स्त्री की स्वेच्छापूर्वक गर्भपात कारित किया जाना और दूसरा प्रकार है स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात किया जाना. धारा 314 दो प्रकार के दंड का निर्धारण करती है, यदि गर्भपात स्त्री की स्वेच्छा से किया जा रहा था और ऐसे गर्भपात में उस स्त्री की मृत्यु हो गई तो गर्भपात करने वाला 10 वर्ष तक की अवधि के दंड से दंडित किया जाएगा और यदि गर्भपात स्त्री की सम्मति के बिना किया जा रहा था मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 के अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध किया जा रहा था तब ऐसे गर्भपात में स्त्री की मृत्यु होने पर आजीवन कारावास के दंड का निर्धारण धारा 314 के अंतर्गत किया गया है. कुछ चिकित्सकीय परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनमें जिस स्त्री का गर्भपात किया जाता है उसकी मृत्यु तक हो जाती है, अधिक खून बह जाने से स्त्री की मृत्यु हो जाती है, इस प्रकार के गर्भपात से यदि गर्भवती स्त्री की मृत्यु होती है उसके संबंध में धारा 314 व्यवहार कर रही है.