प्रतीक चौहान. रायपुर. आखिरकार सिकल सेल संस्थान के डायरेक्टर जनरल डॉ अरविंद नेरल को उनके पद से हटा दिया गया है. उनके स्थान पर सिकल सेल संस्थान के फाउंडर डॉ पीके पात्रा को नया डीजी बनाया गया है.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि सिकल सेल संस्थान के पिछले कुछ वर्षों से डीजी रहे डॉ अरविंद नेरल पर लगे भ्रष्टाचार की जांच का क्या हुआ ? डॉ नेरल पर वहां करोड़ों रुपए की मशीन खरीदी, अपनी निजी लैब में मरीजों से जांच के बाद लिए गए पैसे समेत कई गंभीर आरोप लगे है. इस मामले की जांच के आदेश करीब 1 साल पहले दिए गए थे और 15 दिनों के अंदर जांच पूरी होनी थी.
लेकिन स्वास्थ्य अधिकारियों के पास शायद भ्रष्टाचार की जांच करने का टाइम नहीं है. यही कारण है कि ये जांच अब तक लंबित है.
सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गया सिकल सेल संस्थान
सिकल सेल संस्थान की स्थापना प्रदेश के करीब 10 लाख सिकल सेल मरीजों के इलाज, स्क्रीनिंग और उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये संस्थान वहां पदस्थ अधिकारी और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गया है. ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि यदि शासन ईमानदारी से वहां खरीदी गई मशीने, दवा और जांच किट खरीदी समेत अन्य की जांच करवाएं तो कई चौकाने वाले खुलासे हो सकते है. वहां पदस्थ सीनियर साइंटिस्ट, साइंटस्ट ने करोड़ों रुपए की मशीने खरीदवाई. लेकिन अब उसका कोई भी उपयोग नहीं हो रहा है.
कई बड़े अधिकारियों ने काटी मलाई
सूत्र बताते है कि सिकल सेल संस्थान में कई बड़े अधिकारियों ने मलाई काटी है. लेखा शाखा प्रभारी को वहां डीडीओ बना दिया गया. जबकि ये पद राजपत्रित अधिकारी के लिए होता है. इतना ही नहीं वहां एक बड़े आईएएस अधिकारी की पत्नी भी पदस्थ है. सूत्र बताते है कि उन्हें भी नियमों के मुताबिक कई चार्ज दिए गए, जिसके लिए वह पात्र नहीं है. इतना ही नहीं वे वहां जिस पद में पदस्थ है, उनकी जो सैलरी है वह उस पद के लिए प्रदेश में किसी भी कर्मचारी के लिए नहीं है. लेकिन चूंकि वह एक बहुत बड़े अधिकारी की पत्नी है, इसलिए उनके खिलाफ कभी किसी भी प्रकार की जांच नहीं हुई और जब भी उक्त कर्मचारी का नाम सामने आता है तमाम अधिकारी चुप्पी साध लेते है.
कम्प्यूटर से लेकर फर्नीचर तक में घोटाला
जो शिकायतें अब तक सिकल सेल संस्थान की सामने आई है उसमें ऐसा कहा जाता है कि वहां मौजूद कम्प्यूट सिस्टम/सर्वर से लेकर फर्नीचर तक में लाखों रुपए का गोलमाल है. ऐसे करोड़ों की मशीने है जो कबाड़ हो चुकी है या उसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि ऐसी तमाम शिकायतों की कभी जांच नहीं हुई.
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