रायपुर. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रायगढ़ में कहा था कि हमारी सरकार बनने पर खनन क्षेत्र में पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. लेमरू प्रोजेक्ट के रिजर्व क्षेत्र में विस्थापितों को बसाने का पूरा भरोसा दिया था, लेकिन इन सबके बाद भी सत्ता में आते ही कांग्रेस की सरकार अपने ही आला नेता के वादों पर खरा नहीं उतर रही है. 15 अगस्त 2019 को प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लेमरू प्रोजेक्ट को शुरू करने की घोषणा की थी.

वहीं 27 अगस्त 2019 को कैबिनेट की बैठक में 1995 वर्ग किमी के लेमरू प्रोजेक्ट के प्रस्ताव पर मोहर लगा दिया गया था, लेकिन इस निर्णय के दो साल बाद भी अधिसूचना जारी नहीं की गई और प्रस्तावित 1995 वर्ग किमी के लेमरू प्रोजेक्ट को अब सरकार ने 450 वर्ग किमी करने का फैसला लिया है, जिसे लेकर सरकार के एक मंत्री व सरकार के बीच पत्र लेखन स्पर्धा चल रही है. लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट के लिए अशासकीय संकल्प 2005 में पारित किया गया था. जिसमें प्रस्तावित क्षेत्र में रायगढ़, जशपुर व कोरबा जिले के गांव शामिल थे. उन्होंने कहा कि लेमरू प्रोजेक्ट को 3827 वर्ग किमी करने की योजना पर भी चर्चा चली थी, लेकिन कांग्रेस के विधायकों ने पत्र लिख कर इसके स्वरूप को छोटे करने की बात कही थी.

आखिरकार सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी ने जो वादा किया था उसे पूरा करने में सरकार रूचि क्यों नहीं दिखा रही है. इसके पीछे की वजह क्या है? प्रदेश के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने जुलाई 2020 को पत्र लिखकर मोरंगा साउथ व क्रमांक दो, स्यांग, मदनपुर नार्थ, फतेहपुर ईस्ट कोयला क्षेत्र को नीलामी शामिल न करने की अनुशंसा केन्द्र सरकार से की थी. अचानक अब ऐसा क्या हो गया कि गजराजो के संरक्षण के लिए लेमरू प्रोजेक्ट में कितने गज जमीन मिलेगी इसे लेेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.

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नेता प्रतिपक्ष कौशिक ने कहा कि प्रदेश में 184 कोयला क्षेत्र/खदान में 110 क्षेत्र/खदान में लेमरू प्रोजेक्ट क्षेत्र में स्थित हैं. प्रदेश की जनता यह जानना चाहती है कि आखिरकार कैबिनेट में फैसला लेने के बाद अब तक अधिसूचना का जारी क्यो नहीं की गयी व ये कई सवालों को जन्म देता है कि आखिरकार इसकी क्या वजह है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मंत्री व विधायक लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर ही अपने सरकार पर ही सवाल उठने लगे है. इस कारण संशय है कि कोयला कारोबारियों से कहीं गोपनीय समझौता तो नहीं हो गया है. इस पूरे मामले पर प्रदेश की सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. यह भी बताना चाहिए कि अब वनमंत्री के द्वारा जिन पांच कोयला खदानों को लेकर केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था. उस पर क्या कांग्रेस अडिग रहेगी.

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