शिवम मिश्रा, रायपुर। 660 करोड़ रुपए के CGMSC घोटाले में आरोपी मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा को ईओडब्ल्यू की विशेष कोर्ट ने छह दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया. इसके पहले सात दिन की रिमांड खत्म होने पर शशांक चोपड़ा को ईओडब्ल्यू न्यायालय की विशेष न्यायधीश निधी शर्मा तिवारी के कोर्ट में पेश किया गया था. यह भी पढ़ें : बागियों पर कार्रवाई जारी : भाजपा ने 14 बागी नेताओं को किया निष्कासित, 6 साल के लिए पार्टी से दिखाया बाहर का रास्ता

ईओडब्ल्ये के वकील ने शशांक चोपड़ा से पूछताछ में कई तथ्यों के सामने आने की बात कहते हुए तथ्यों की जांच के लिए अतिरिक्त रिमांड मांगी थी. इस पर न्यायाधीश ने शशांक की छह दिनों की पुलिस रिमांड मंजूर की. अब आरोपी शशांक चोपड़ा 10 फरवरी तक ईओडब्ल्यू की रिमांड पर रहेगा.

बता दें कि भूपेश बघेल के मुख्यमंत्रित्व काल में किस तरह से छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) ने मोक्षित कॉरपोरेशन के माध्यम से छत्तीसगढ़ की राजकोष खाली करने का भांड़ा ‘ऑडिट ऑब्जर्वेशन रिपोर्ट’से फूटा था. इस रिपोर्ट के आधार पर भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग के प्रिंसिपल अकाउंटेंट जनरल (ऑडिट) आईएएस यशवंत कुमार ने 660 करोड़ रुपए के घपले पर एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार पिंगआ को पत्र लिखा था.

दो साल के ऑडिट में खुली थी सिस्टम की पोल

लेखा विभाग की टीम ने CGMSC के वित्त वर्ष 2022-24 और 2023-24 के दस्तावेज को खंगाला तो पाया कि बिना बजट आवंटन के 660 करोड़ रुपए की खरीदी की गई है. आवश्यकता से ज्यादा खरीदे केमिकल और उपकरण को खपाने के चक्कर में नियम-कानून को भी दरकिनार किया गया. जिस हॉस्पिटल में जिस केमिकल और मशीन की जरूरत नहीं थी, वहां भी सप्लाई कर दी गई थी.

बिना जरूरत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में की गई सप्लाई

प्रदेश के 776 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में रीएजेंट और उपकरणों की सप्लाई की गई, जिनमें से 350 से अधिक ही प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ऐसे हैं, जिसमें कोई तकनीकी, जनशक्ति और भंडारण सुविधा उपलब्ध ही नहीं थी. ऑडिट टीम के अनुसार, DHS ने स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं में बेसलाइन सर्वेक्षण और अंतर विश्लेषण किए बिना ही उपकरणों और रीएजेंट मांग पत्र जारी किया था.

स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के खिलाफ भी मामला

ईओडब्ल्यू ने अपनी एफआईआर में स्वास्थ्य महकमे के आला अधिकारियों के खिलाफ भी अपराध दर्ज किया है. यही नहीं एफआईआर में स्वास्थ्य संचालक और सीजीएमएससी की एमडी पर गंभीर टिप्पणी की गई है. ईओडब्ल्यू की शुरुआती जांच में यह तथ्य भी सामने आया है कि अफसरों की मिलीभगत से सरकार को अरबों रुपए की चपत लगाई गई.