प्रमोद कुमार/ कैमूर। जिले के चैनपुर प्रखण्ड स्थित करकट गढ़ गांव में बना 13 लाख रुपये का चेक डैम पहली बरसात में ही टूटकर बह गया। यह चेक डैम जिला परिषद के 15वीं वित्त आयोग योजना के तहत बनाया गया था और इसकी निर्माण लागत 13 लाख रुपये थी। चेक डैम का उद्देश्य बरसात के पानी को रोकना और आसपास के किसानों को सिचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना था। लेकिन बारिश के पहले ही महीने में यह चेक डैम अपनी प्रभावशीलता को साबित करने में असफल रहा और अब सवाल उठ रहे हैं कि इस भारी खर्च के बावजूद चेक डैम टूटने के पीछे कौन जिम्मेदार है।
किसानों को नहीं मिलेगी सुविधा
यह चेक डैम महेंद्र यादव के खेत के ऊपर बनाया गया था, जो कि चेक डैम से लाभान्वित होने वाले पहले किसान थे। जिला परिषद ने इस चेक डैम को एक साल पहले ही पूरा किया था लेकिन पहले ही बरसात में यह टूटकर बह गया। किसानों और स्थानीय लोगों के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि यह योजना उन्हें कृषि में मदद पहुंचाने के लिए शुरू की गई थी।
जिला परिषद की लापरवाही?
चैनपुर के जिला परिषद सदस्य बल्लू राम मस्तान ने बताया कि लगातार बारिश के कारण चेक डैम के दोनों तरफ का बाहि बह गया है और अब इस नुकसान के बाद जिला परिषद की जिम्मेदारी पर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि चेक डैम का निर्माण कार्य जिला परिषद के इंजीनियरों की देख-रेख में हुआ था और यह योजना 13 लाख रुपये की लागत से बनी थी। अब इस टूटे चेक डैम को फिर से बनवाने के लिए एक नई योजना बनाई जाएगी लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों एक साल में ही यह चेक डैम टूट गया?
क्या बोले इंजीनियर
इस मामले पर जिला परिषद के कार्यपालक अभियंता का कहना था कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर जैसे राज्य में भी बाढ़ आती है, तो क्या हुआ? उन्होंने यह भी कहा कि वे एक सप्ताह के भीतर इस मामले की जांच कर आगे की कार्रवाई करेंगे। हालांकि यह जवाब स्थानीय लोगों और किसानों को संतुष्ट करने में असफल रहा क्योंकि उनका कहना है कि यह चेक डैम सरकार की योजना के तहत बना था और यदि यह इतनी जल्दी टूट गया तो फिर सरकार की योजनाओं पर विश्वास कैसे किया जाए?
सवालों के घेरे में सरकार की योजनाएं
कैमूर में चेक डैम के टूटने के बाद यह सवाल उठता है कि बिहार सरकार विकास के लिए लाखों रुपये खर्च करती है, लेकिन अगर योजनाओं की निष्पक्षता और गुणवत्ता पर इस तरह के सवाल खड़े होते हैं तो क्या इसका असर जनता की योजनाओं पर नहीं पड़ेगा? स्थानीय लोग और किसान चाहते हैं कि जिला परिषद के अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
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