Chhath Puja: महापर्व छठ व्रत एक कठिन तपस्या के समान है. छठ व्रत अधिकतर महिलाएं करती हैं. कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं. व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है. इस व्रत में भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है. बुधवार शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अगले दिन गुरुवार को कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. सप्तमी के दिन अर्घ्य देने के बाद छठ पूजा व्रत पूरा होता है.
छठ पूजा व्रत को सबसे कठिन व्रत माना जाता है, क्योंकि इसमें व्रती लगभग 36 घंटों तक निर्जलित रहते हैं, यानी लंबे समय तक पानी भी नहीं पीते हैं. यह व्रत एक कठोर तपस्या है. व्रत पूरा करने के बाद लोग व्रत करने वाले के पैर छूते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं. ऐसा माना जाता है कि उस समय परवैतिन द्वारा दिया गया आशीर्वाद अवश्य पूरा होता है.़
Chhath Puja व्रत से जुड़ी मान्यताएं
ऐसा बच्चों के सौभाग्य, लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत को रखती हैं, उनके बच्चों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है. छठी मैया की कृपा से परिवार में आपसी प्रेम और सद्भाव बना रहता है.
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में प्रकृति ने स्वयं को छह भागों में विभाजित किया था. इसके छठे अंश को माता देवी कहा जाता है. इस देवी को छठ माता के नाम से पूजा जाता है.
- एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ माता भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं.
- देवी दुर्गा के छठे स्वरूप यानी कात्यायनी को छठी माता भी कहा जाता है.
- छठ मैया को सूर्य देव की बहन माना जाता है. इसी वजह से छठ में भगवान सूर्य के साथ माता की भी पूजा की जाती है.
छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है. इसी वजह से बच्चों के सौभाग्य, लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए छठ पूजा व्रत किया जाता है.
दूसरी मान्यता यह है कि बिहार में देवी सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत रखा था और व्रत के प्रभाव से उनके जीवन की सभी परेशानियां दूर हो गईं.
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