रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज के संग्रहण के मामले में देश का अव्वल राज्य बन गया है. देश का 73 प्रतिशत वनोपज क्रय कर छत्तीसगढ़ राज्य में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. छत्तीसगढ़ देश का एकमात्र राज्य है, जहां 52 प्रकार के लघु वनोपज को समर्थन मूल्य पर क्रय किया जा रहा है. इससे वनवासियों एवं वनोपज संग्राहकों को सीधा लाभ मिल रहा है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर वनोपज संग्राहकों को उनकी मेहनत का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए लघु वनोपजों के क्रय मूल्य में बढ़ोतरी के साथ-साथ तेंदूपत्ता संग्रहण की दर को 2500 रुपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर सीधे 4000 रुपए प्रति मानक बोरा किया गया, जिसकी वजह से राज्य के लगभग 12 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों को प्रति वर्ष 225 करोड़ रुपए की अतिरिक्त मजदूरी के साथ ही 232 करोड़ रुपए का अतिरिक्त प्रोत्साहन पारिश्रमिक बोनस भी मिला है. महुआ के समर्थन मूल्य को 17 रुपए से बढ़ाकर 30 रुपए प्रति किलोग्राम, इमली 25 रुपए के बजाय अब 36 रुपए प्रति किलो, चिरौंजी गुठली 93 रुपए से बढ़ाकर 126 रुपए प्रति किलो की दर से समर्थन मूल्य पर क्रय किया जाने लगा है.

इसी तरह रंगीनी लाख 130 रुपए प्रति किलो ग्राम से बढ़ाकर 220 रुपए प्रति किलोग्राम, कुसमी लाख 200 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर अब 300 रुपए प्रति किलोग्राम, शहद 195 रुपए से बढ़ाकर 225 रुपए प्रति किलोग्राम में खरीदा जा रहा है. इसका सीधा लाभ 5 लाख ग्रामीण परिवारों को प्राप्त हुआ. अन्य वनोपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और खरीदी की व्यवस्था करने से ग्रामीणों को लगभग 300 करोड़ रुपए की अतिरिक्त लाभ होने लगा है.

वर्तमान में राज्य में संग्रहित वनोपज ही केवल पांच फीसद हिस्से का ही प्रसंस्करण राज्य में होता है. इस स्थिति को बदलने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने वनांचल परियोजना प्रारंभ की गई है, बस्तर जैसे क्षेत्र में वनोपज आधारित उद्योग को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से आकर्षक सब्सिडी का प्रावधान किया गया है. इस योजना से उत्साहित होकर बस्तर क्षेत्र में 15 उद्यमियों ने लघु वनोपज आधारित उद्योग स्थापित करने हेतु अपनी सहमति दी है, इनके साथ एमओयू प्रक्रियाधीन है.

वनोपज आधारित उद्योगों में इमली, महुआ, टोरा, हर्रा, बहेड़ा, ला, एसेन्सियल आइल, मुनगा, कोदो कुटकी, रागी आग गुठली, काजू, भिलवा आदि के उद्योग लगाये जायेंगे. इन उद्योगों की बस्तर में लगने से यहाँ के ग्रामीणों को न केवल अतिरिक्त रोजगार प्राप्त होगा, बल्कि वनोपज की लगातार मांग बनी रहेगी. वनांचल से प्राप्त होने वाले वनोपज के अलावा इन उद्योगों के स्थापित होने से बस्तर अंचल के कृषक मुनगा, लेमन ग्रास, सतवर, पचौली, वेटीवर, सफेद मूसली, पिपली, अश्वगंधा जैसे जड़ी बूटियों की खेती भी कर सकेंगे.