रायपुर। छत्तीसगढ़ में किसानों और आदिवासियों के बीच काम कर रहे विभिन्न संगठनों ने मिलकर खेती-किसानी के मुद्दों पर संघर्ष के लिए एक साझा मोर्चा छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन का गठन किया है. इस मोर्चे में छत्तीसगढ़ किसान सभा, राजनांदगांव जिला किसान संघ, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), दलित आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित आदिवासी मंच (सोनाखान), गांव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, परलकोट किसान कल्याण संघ, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान सभा (सरिया), आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन, भारत जन आंदोलन, आदिवासी महासभा और राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद् आदि संगठन प्रमुख हैं. छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन का दायित्व राजनांदगांव जिला किसान संघ के नेता सुदेश टीकम को सौंपा गया. टेकाम संगठन के संयोजक बनाए गए हैं.

27 नवंबर को होगा आंदोलन

किसान आंदोलन के गठन के बाद सुदेश टेकाम ऐलान किया कि किसानों के मुद्दे को लेकर 27 नवंबर को प्रदेश भर में प्रदर्शन किया जाएगा. इस प्रदर्शन में प्रदेश में किसान ऋंखला बनाने का ऐलान किया गया है. टेकाम ने कहा कि 27 नवम्बर को जब दिल्ली में हजारों किसान संसद पर प्रदर्शन कर रहे होंगे, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े संगठन गांव-गांव में किसान श्रृंखला का निर्माण करके मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों और भूपेश सरकार की किसानों और आदिवासियों की समस्याओं के प्रति संवेदनहीनता के खिलाफ “कॉर्पोरेट भगाओ – खेती-किसानी बचाओ – देश बचाओ” के केंद्रीय नारे पर विरोध कार्यवाही को अंजाम देंगे.

आंदोलन से जुड़े सुदेश टेकाम, संजय पराते और आलोक शुक्ला ने कहा कि सरकार द्वारा बनाये गए तीन कृषि विरोधी कानूनों को से लेकर राज्य के मुद्दों पर हमारा संघर्ष जारी है. केंद्र सरकार हमारी मांग है कि कृषि कानून को वापस लिया जाए. किसान विरोधी तीनों कानून देश की बर्बादी और अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण का रास्ता खोलते हैं. ये कानून किसानों के हित में नहीं है.  उन्होंने कहा कि इन कृषि विरोधी कानूनों का मुख्य मकसद देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा किसानों की फसल को लागत मूल्य से भी कम कीमत पर छीनना और अधिकतम मुनाफा कमाते हुए उपभोक्ताओं को लूटना है. ये कानून सार्वजनिक वितरण प्रणाली को तबाह करते हैं और नागरिकों की खाद्यान्न सुरक्षा को नष्ट करते हैं.

छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के नेताओं ने राज्य सरकार पर भी निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में केंद्रीय कृषि कानून को निष्प्रभावी बनाने के लिए जो संसोधन किया गया उसमें मंडी में समर्थन मूल्य को सुनिश्चित नहीं किया गया है. इसलिए छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन की स्पष्ट मांग है कि छत्तीसगढ़ सरकार केंद्र सरकार के कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए पंजाब सरकार की तर्ज़ पर एक सर्वसमावेशी कानून बनाये, जिसमें किसानों की सभी फसलों, सब्जियों, वनोपजों और पशु-उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने, मंडी के अंदर या बाहर और गांवों में सीधे जाकर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदना कानूनन अपराध होने और ऐसा करने पर जेल की सजा होने, ठेका खेती पर प्रतिबंध लगाने और खाद्यान्न वस्तुओं की जमाखोरी पर प्रतिबंध लगाने के स्पष्ट प्रावधान हो.