पत्रकार सत्यप्रकाश पाण्डेय के फेसबुक पेज से साभार

इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जिले की नवागढ़ विधानसभा अंतर्गत आने वाले ग्राम गिधवा-परसदा में प्रदेश का पहला पक्षी महोत्सव मनाया जा रहा है जिसका औपचारिक उदघाटन रविवार 31 जनवरी 2021 को किया गया। यह पक्षी महोत्सव 2 फरवरी 2021 को आज समाप्त हो जाएगा। दशकों बाद राज्य के इस क्षेत्र में एक बार फिर से पक्षी संरक्षण-संवर्धन की उम्मीदें ज़िंदा होती दिखाई पड़ रही हैं। आज से करीब नौ साल पहले राज्य में भाजपा शासित डॉक्टर रमन सिंह की सरकार में गिधवा को बर्ड सेंचुरी के रूप में विकसित किये जाने की कोशिशें हुईं जो वक्त के साथ उम्मीदों को तार-तार कर गईं। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद एक बार फिर से पक्षियों को नई उड़ान मिलने की उम्मीद की जा रही है।

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न इलाकों में पूरे साल स्थानीय पक्षियों के बीच प्रवासी परिंदों की मौजूदगी दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ राज्य का रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग -भिलाई, बेमेतरा समेत कई जिला मेहमान परिंदों  मेज़बानी को हर बरस आतुर नज़र आता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और न्यायधानी बिलासपुर के मध्य मुंगेली मार्ग पर स्थित बेमेतरा ज़िले का गिधवा-परसदा एक बार फिर स्थानीय और प्रवासी पक्षियों को लेकर सुर्ख़ियों में हैं। क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के आगमन को लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह है। तमाम अव्यवस्थाओं और खामियों के बीच गिधवा-परसदा में चल रहा बर्ड फेस्टिवल अपने तरह का अनोखा है।

गिधवा-परसदा के छोटे- बड़े सरोवरों में पिछले दो दशक से प्रवासी पक्षी जुटते रहें हैं जो पिछले चार साल तक नज़र नहीं आये। इसके पीछे मुख्य वजह इलाके में हुई कम बारिश और जलाशयों का सूखा रहना प्रमुख रहा। इस साल अच्छी बारिश ने सालों बाद एक बार फिर से उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं।  गिधवा-परसदा बर्ड वाचिंग की दृष्टि से उम्दा साइट मानी जाती रही है। जैवविविधता और पर्यावरण संरक्षण में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गिधवा जलाशय में 150 से अधिक पक्षियों का अनूठा संसार है। इनमे जलिय और थलिय दोनों ही प्रकार के पक्षी शामिल है। शासन-प्रशासन और स्थानीय लोगों ने इस धरोहर को सहेजकर रख लिया तो यक़ीन मानिये ‘गिधवा-परसदा’  में दिखाई दे रही करीब 150 प्रजाति के पक्षियों की जानकारी नई पीढ़ी को होगी। ऐसा माना जा रहा है कि गिधवा-परसदा’ को व्यवस्थित पक्षी विहार के रूप में विकसित कर न सिर्फ स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करए जायेंगे बल्कि पर्यटन के मानचित्र पर इसकी अलग पहचान बनाकर आय के रास्ते भी खोले जायेंगे।

उल्लेखनीय है कि बेमेतरा ज़िले का गिधवा-परसदा गांव छत्तीसगढ़ प्रदेश के उन 51 जगहों में सबसे ज्यादा उपयुक्त पाया गया था जहां प्रवासी पक्षी आते हैं। राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के पक्षी विशेषज्ञों ने अलग-अलग ऋतुओं में सात बार गिधवा-परसदा का जायजा लिया और हरी झंडी के साथ फिजिबिलिटी रिपोर्ट वर्ष 2011-2012 में तत्कालीन पीसीसीएफ को सौंपी गई थी ।

एसएफआरटीआई ने अक्टूबर 2012 में ‘छत्तीसगढ़ के प्रवासी पक्षी  एक अध्ययन’ परियोजना की शुरुआत की। इस परियोजना के तहत राज्य की 52 जलाशय और तालाबों का सर्वेक्षण किया गया। वहीं पक्षी प्रेमियों सहित कई संस्थाओं से पक्षियों के संबंध में पूरी जानकारी जुटाई गई। सर्वेक्षण में गिधवा बांध को पक्षी विहार बनाए जाने को लेकर यहां की मिट्टी और वानस्पतिक स्थिति की जानकारी ली गई। सर्वेक्षण टीम ने पीपल, बरगद, पलास, बबूल के पेड़-पौधे और पानी को पक्षी विहार के लिए काफी बेहतर पाया। सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि प्रवासी पक्षियों के लिए मछली की अच्छी आपूर्ति भी हो सकती है। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का अघोषित अभयारण्य माना जाता था । यही वजह है कि एसएफआरटीआई ने गिधवा को पक्षी विहार बनाने का फैसला लिया जो आज तलक अधर में पड़ा हुआ है। पक्षी विहार बनने से गिधवा एक बड़ा पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित होने की उम्मीद जताई गई थी।

बर्ड्स सेंचुरी बनाने की पहल गिधवा के उन ग्रामीणों ने की थी जो वर्षों से इन पक्षियों की हिफाजत कर रहे हैं। गिधवा नांदघाट से आठ किमी दूर मुंगेली रोड पर है। यहां 51 एकड़ में फैले 400 वर्ष पुराने तालाब के अलावा करीब 200 एकड़ के जलभराव का एक बड़ा क्षेत्र है जो इस साल के पहले तक करीब चार साल तक सूखा पड़ा था। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का अघोषित अभयारण्य माना जाता रहा है । सर्दियों की दस्तक के साथ अक्टूबर से मार्च के बीच यहां साइबेरिया, बर्मा और बांग्लादेश से पहुँचने वाले पक्षी सालों बाद एक बार फिर नज़र आये हैं। जानकार बताते हैं जलाशय की मछलियां, गांव की नम भूमि और जैव विविधता विदेशी पक्षियों को काफी आकर्षित करती है ।