सत्यपाल सिंह,रायपुर। तकनीकी शिक्षा मंत्री उमेश पटेल जी ये आपके विभाग का शासकीय औघौगिक प्रशिक्षण संस्थान है. संस्थान की कार्यशैली कैसी है उसके लिए इस रिपोर्ट को आपको जरूर पढ़नी चाहिए. इसलिए पढ़नी चाहिए कि आपका विभाग किस तरह काम कर रहा है. सरकार की मंशा है कि छत्तीसगढ़ का हर छात्र उच्च शिक्षित हो प्रशिक्षित हो, लेकिन जब उसे पढ़ने से ही कोई संस्था रोक दे, तो क्या किया जाए ? उस स्थिति में जहां अपर कलेक्टर को भी पत्र लिखकर यह निर्देशित करना पड़ रहा है कि इस छात्र को प्रवेश दिया जाए, लेकिन संस्थान वाले न जाने किस मनमानी पर अड़े हुए है कि छात्र को वहां पर प्रवेश ही नहीं मिल रहा है.

छात्र कौन है ये भी जान लीजिए ?

प्रवेश के लिए जिस छात्र को इतनी मशक्कत करनी पड़ रही है, उसका नाम लव कुमार है. उम्र 20 वर्ष और मुंगेली जिले के ग्राम पंचायत फुलवारी का निवासी है. लव के माता-पिता की 10 साल पहले आकास्मिक मौत हो गई थी. उसके दो छोटी बहन और एक भाई भी है. ये सभी अपने बुजुर्ग दादा-दादी के साथ रहते हैं. गरीबी रेखा के अंतर्गत मिलने वाले राशन और दैनिक मजदूरी से अपना जीवन चला रहे है. लव भी मजदूरी करता था. लेकिन अब वह आगे भी पढ़ना चाहता है.

अपर कलेक्टर ने भी दिया था निर्देश

लव कुमार शासकीय औघौगिक प्रशिक्षण संस्था सारधा (आईटीआई) में कोपा (कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट) की पढ़ाई करना चाहता है. जिसके लिए इन्होंने अनाथ श्रेणी से आवेदन किया था. उस ‌प्रवेश लिस्ट में लव कुमार का मेरिट सूची में नाम भी आ गया. जिसके बाद लव कुमार ने ग्राम पंचायत फुलवारी के संरपच और समाज कल्याण विभाग मुंगेली के उपसंचालक से अनाथ प्रमाण पत्र बनवाया. जिसे आईटीआई के प्रचार्य ने मान्य नहीं किया. लव कुमार अपनी समस्या को मुंगेली के अपर कलेक्टर राजेश नशीने को भी समस्या बताया, जिस पर अपर कलेक्टर ने लोरमी आईटीआई के प्राचार्य को प्रवेश देने की कार्रवाई के लिए निर्देश किया.

प्लीज मुझे प्रवेश दिला दो

लव कुमार कहते हैं कि मेरे माता-पिता नहीं है, 10 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई थी. मेरे तीन छोटे भाई बहन के साथ बुजुर्ग दादा दादी है. मैं पढ़ लिखकर उनका सहारा बनना चाहता हूं. मुझे पढ़ने का अवसर चाहिए. मुझे प्लीज प्रवेश दिला दो. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण मैं पढ़ाई छोड़ कर मजदूरी करता था, लेकिन अब पढ़ाना चाहता हूं. मैरिट में नाम है. माता पिता नहीं इसलिए अनाथ कोटा फार्मे भरा था. नाम भी आया, लेकिन प्रवेश नहीं मिल रहा है.

इस जिद पर अड़ा है संस्थान

संरपच, समाज कल्याण विभाग द्वारा बने अनाथ प्रमाण पत्र और अपर कलेक्टर के निर्देश के बाद भी शासकीय आईटीआई के प्राचार्य अपनी जिद पर अड़े हुए है. वो अब यह तर्क दे रहे हैं कि लव कुमार दादा-दादी के साथ रहते हैं. इसलिए वो अनाथ नहीं है. यही वजह है कि लव को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.

अब इन परिस्थितियों में प्रवेश नहीं मिले, तो इसका जिम्मेदार किसे माना जाए ? बड़ा सवाल ये है कि क्या छात्र के माता-पिता का नहीं होना ही प्रवेश पर बाधा डाल रही है ? जब अपर कलेक्टर ने भी निर्देश दे दिया, तो उसकी अवहेलना क्यों ? ऐसे में छात्र पढ़ेगा कैसे ? नवा छत्तीसगढ़ गढ़ेगा कैसे ? तकनीकी शिक्षा मंत्री को भी इस पर विचार करना चाहिए ?

अनाथ प्रमाण पत्र