Chhattisgarh News: रायपुर. बस्तर के जंगलों में इन दिनों चार के पेड़ फल से लदे हुए हैं. चार फल से निकलने वाले बीज को चिरौंजी कहा जाता है, और बाजार में 1000 से 1200 रूपए प्रतिकिलो के भाव से बिकता है. लेकिन ग्रामीण चिरौंजी के बजाय चार गुठली को ही व्यापारियों के पास औने-पौने दाम पर विक्रय करते हैं. हालांकि वन विभाग भी समर्थन मूल्य घोषित कर चिरौंजी गुठली की खरीदी करता है, पर इसके पहले ही कोचिया गांवों में पहुंचकर खरीदी कर लेते हैं. इससे ग्रामीणों को चिरौंजी गुठली की सही दाम नहीं मिल पाते है.

बस्तर की सबसे मंहगी वनोपज है चिरौंजी

औषधीय गुणों से भरपूर चिरौंजी का उपयोग मेवा के रुप में होता है. इन दिनों बस्तर के ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाले साप्ताहिक हाट बाजारों में ग्रामीण महिलाएं चार पाक को दोनी में बिक रहीं है, और प्रति दोनी 20 रूपए में बिकता है. वहीं चार के कच्चे फल को तोड़ने के बाद उसे सूखा लेते हैं, और सूखा चार फल को व्यापारी खरीदी करने घर तक पहुंचते हैं.

कभी नमक के बदले देते थे चिरौंजी

बस्तर में कभी ग्रामीण नमक के बदले चिरौंजी देते थे, लेकिन अब सरकार ने चिरौंजी गुठली का समर्थन मूल्य 109 रुपए प्रति किलो निर्धारित किया है. वहीं खरीदी की जिम्मेदारी समितियों को दी गयी है, लेकिन खरीदी की व्यवस्था सही नहीं होने से ग्रामीण इसे व्यापारियों को ही बेच देते हैं.

माटी त्यौहार के बाद ही संग्रहण

बस्तर में प्रत्येक गांव में माटी व आम त्यौहार मनाया जाता है. त्यौहार मनाकर नए फल को सबसे पहले देवी-देवता को अर्पण किया जाता है, इसके बाद ही ग्रामीण ग्रहण करते हैं. मान्यता है कि देवी-देवता को अर्पण करने के पहले यदि कोई ग्रहण कर लेता है, तो गांव में किसी भी तरह अनहोनी होने का खतरा बने रहता है.