रायपुर। अमूमन पुलिस की सख्त छवि ही सामने आती है. लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने पिछले दो सालों में अपने कर्मचारियों के लिये जो संवेदनशीलता का उदाहरण प्रस्तुत किया है, उसने कई परिवारों के जख्मों पर मरहम का काम किया है. विगत दो वर्षों में अब तक रिकॉर्ड 421 दिवंगत, शहीद पुलिसकर्मियों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्तियां दी गयी हैं. पिछले दो सालों में 47 शहीद और 374 सामान्य मृत्यु के प्रकरणों में पात्र परिजनों को अनुंकपा नियुक्तियां दी गयी हैं. विगत दो साल 2019 और 2020 में अनुकंपा नियुक्ति देने का ये आंकड़ा राज्य बनने के 20 साल में सबसे बड़ा है. जो ये दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ पुलिस अपने कर्मचारियों के लिये कितनी संवेदनशील है. मतलब एक साल में औसतन 210 पुलिस परिवारों को अनुकंपा नियुक्ति दी गयी है.

इस बारे में डीजीपी डीएम अवस्थी कहते हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के स्पष्ट निर्देश हैं कि अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार होना चाहिये. मैंने भी पुलिस परिवारों को बोलकर रखा है कि अनुकंपा नियुक्ति के लिये यदि पात्र हैं और यदि कोई परेशानी आ रही है तो सीधे मुझे फोन करें. पिछले दो सालों में अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करना मेरी प्राथमिकता में शामिल रहा है. पुलिस जवान हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं. उनके जाने के बाद परिजनों को नौकरी और देखभाल हमारी जिम्मेदारी है.

केस- 1

महिला ने बताया कि मैं पांच माह की गर्भवती थी. मैंने और मेरे पति ने आने वाले बच्चे के लिये बहुत सपने संजोकर रखे थे. लेकिन 9 अप्रैल 2019 को पति की सड़क दुर्घटना में निधन के बाद सारे सपने चकनाचूर हो गये. उनके जाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो गयी. घर चलाना मुश्किल हो गया. एक साल का बेटा और मेरे बुजुर्ग माता-पिता भी मुझ पर ही आश्रित हैं. अपनी आप-बीती बताते हुये महेश्वरी कुर्रे के आंसू छलक पड़ते हैं. वे बताती हैं कि उनके पति स्वर्गीय रमेश कुर्रे जांजगीर में आरक्षक पद पर तैनात थे. कोरोना के चलते अनुकंपा नियुक्ति के लिये किसी से मिल भी नहीं पा रही थी. लेकिन एक दिन स्पंदन कार्यक्रम के बारे में पता चला. मैंने खुद को रजिस्टर कराया. एक सितंबर को डीजीपी डीएम अवस्थी ने मुझसे वीडियो कॉल पर बात की. उन्होंने उसी दिन तत्काल अनुकंपा नियुक्ति के लिये निर्देश दिये. अभी मेरे पास नियुक्ति पत्र आ गया है. अब जल्द ही मैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और डीजीपी की हमेशा आभारी रहूंगी.

केस-2

साल 2018 में गरियाबंद के आमामोरा में जनशिविर लगा हुआ था. सर्चिंग पर निकली पार्टी की गाड़ी को नक्सलियों ने लैंडमाईन विस्फोट से उड़ा दिया. जिसमें आरक्षक भोज सिंह टांडिल्य शहीद हो गये. उनके भाई तरुण टांडिल्य बताते हैं कि बड़े भाई के शहीद होने के बाद बूढ़े मां-बाप और विकलांग बहन की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गयी. एक तरफ भाई के जाने का दुख तो दूसरी तरफ घर चलाने की जिम्मेदारी. मुझे लगता था कि सरकारी काम लेटलतीफ होते हैं. लेकिन कुछ ही दिनों में आईजी कार्यालय से फरवरी 2019 में अनुकंपा नियुक्ति के लिये पत्र मिल गया. मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी भी हो सकता है.