सत्यपाल सिंह,रायपुर। छत्तीसगढ़ी व्यंजन के प्रसार-प्रचार के लिए सरकारी सहयोग से भारी रियायत के साथ गढ़कलेवा खोला गया. लेकिन गढ़कलेवा ठेका संचालक का हौसला इतना बुलंद है कि संस्कृति विभाग के निर्धारित राशि और व्यंजन से कोई मतलब नहीं है. नोटिस के बावजूद खुलेआम आलू बंडा और साबुन दाना बड़ा बेचा जा रहा है. इतना ही नहीं संस्कृति विभाग द्वारा निर्धारित नास्ता व्यंजन में 60 प्रतिशत व्यजंन बंद कर दिया गया है, जो व्यजंन बन रहा है, उसमें 5 से 10 रूपए बढ़ा दिया गया हैं. मनमाना तरीके से दूसरे राज्य के व्यंजन बेचे जा रहे है. सवाल पूछने पर यह कहते नहीं चूकते की अधिकारी से शिकायत कर दो हमारा कुछ नहीं कर सकते.
ठेका संचालक की मनमानी यही खत्म नहीं होती है. खाना के लिए संस्कृति विभाग द्वारा स्पेशल थाली 80 रूपए निर्धारित है, लेकिन बिना अनुमोदन के 150 रू कर दिया गया है. अगर आप पार्सल कराते हैं, तो 20 रुपए एक्सट्रा चार्ज लिया जाता है. इस मनमानी पर पर्दा रखने के लिए इसके समकक्ष 100 रूपए के सामान्य थाली बेची जा रही है. थाली से चौसेला गायब कर लगभग दस ग्राम चावल और सिर्फ दो रोटी दिया जा रहा है.
लोगों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि शहर के होटलों में 100 रूपए में अच्छा खाना मिलता है. यहां रेट बढ़ा कर खाने का मात्रा कम कर दिया गया है. दो रोटी और थोड़ी सी चावल दी जाती है. दोबारा लेने पर अलग से चार्ज लेते है. पहले से यहां खाना खाते आ रहे हैं, पहले 80 रुपए में पर्याप्त खाना दिया जाता था, लेकिन अब 80 रूपए की थाली को 150 रुपए में बेचा जा रहा है. आज के खाने में कीड़ा और मीठे में चीटी निकला है. इसलिए खाना नहीं खा रहे हैं, हम लोगों के लिए जो खाना दिया जा रहा, वो पर्याप्त नहीं है.
इस मामले में संस्कृति विभाग उप संचालक जे आर भगत का कहना है कि फिर से टेंडर हुआ, जो पहले से निर्धारित दर है. वही लागू है, कोई नया दर लागू नहीं किया गया है. ना कोई अनुमोदन आया है. लल्लूराम डॉट के पहले भी खबर प्रकाशित किया था उसके बाद नोटिस जारी किया गया था कि आलू बंडा और साबुन दाना बड़ा आगे से बेचने पर टेंडर निरस्त करने का चेतावनी दिया गया था, नियमानुसार जांच के बाद आगे कार्रवाई की जाएगी. बता दें कि नए ठेका में सिर्फ समूह का नाम बदला गया है, लेकिन अभी भी वही व्यक्ति संचालित कर रहे हैं.
अब देखना यह है कि नोटिस की अवहेलना में अधिकारी नोटिस के चेतावनी अनुरूप कार्रवाई करते है या कोई बहाना बनाकर अपना मिली भगत होने का सबूत देते है. बड़ा सवाल ये है कि संस्कृति विभाग परिसर में गढ़कलेवा है. वहां अधिकारी कर्मचारी लगातार आते जाते रहते है, फिर भी टेंडर नियमों का अहवेलना कैसे दिखाई नहीं दिया. सवाल ये भी है कि यदि अधिकारी वहां से व्यंजन मंगाते है, तो निर्धारित राशि नहीं देते. इसलिए बढ़े रेट की जानकारी नहीं होने की बात कहकर जांच करने का हवाला दिया गया है.