Child Care Tips: हर माता-पिता की यह शिकायत रहती है या फिर वे इस बात को लेकर परेशान होते हैं कि जन्म के वक्त उनके बच्चे का रंग गुलाबी था. बच्चा गोरा चिट्टा था. मगर, अब रंग डार्क हो रहा है. ऐसा क्यों हो रहा है? इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए? ऐसे कई सवाल माता-पिता के मन में उठते हैं. डॉक्टर कहते हैं कि यह सामान्य प्रक्रिया है. इसके लिए माता-पिता को​ बिल्कुल भी परेशान नहीं होना चाहिए. जन्म के 1 साल तक शिशु के रंग में बदलाव सामान्य है. अगर, इसके बाद भी यह नहीं रूकता है या रंग सामान्य नहीं होता है डॉक्टर से सलाह लें. क्योंकि कई बार यह बड़ी समस्या भी हो सकती है.

आज हम आपके इसी सवाल का जवाब बताएँगे कि जन्म के बाद बच्चे की त्वचा का रंग क्यों बदलता है?  चलिए कारणों को जानते हैं.

Child Care Tips: वातावरण से बदलता है रंग

जेनेटिक

मां के गर्भ से जब शिशु बाहर निकलता है तो वह गुलाबी होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि 9 महीने तक वह मां के गर्भ में रहता है. वह सीधे सूरज के संपर्क में नहीं आता. जन्म के बाद जैसे-जैसे वह सूरज की किरणों, धूप, हवा, पानी और आसपास के वातावरण के साथ संपर्क में आता है, वह माता-पिता रंग में आ जाता है.

मेलानिन

आपको शायद न पता हो, लेकिन किसी भी व्यक्ति के शरीर का रंग मुख्य रूप से मेलानिन नामक पिगमेंट पर निर्भर करता है. जन्म के समय नवजात में इसका स्तर कम होता है. यही वजह है कि त्वचा हल्की गुलाबी दिखती है. जैसे-जैसे मेलानिन का स्तर बढ़ता है शिशु की त्वचा का रंग बदलना शुरू हो जाता है. एक समय के बाद वह ​स्थिर हो जाता है और फिर नहीं बदलता.

पीलिया

नवजात शिशु को पीलिया होता है, यह सामान्य सी स्थिति है. पीलिया की वजह से भी त्वचा हल्की पीली नजर आती है. यह शरीर में बिलीरुबिन की अधिकता के कारण होता है. डॉक्टर बच्चों को बॉडी-वॉर्मर में रखते हैं. टेस्ट करते हैं. ट्रीटमेंट करते हैं. शिशु को कुछ दिन तक अस्पताल में रखने के बाद डिस्चार्ज कर दिया जाता है. धीरे से पीला रंग खत्म हो जाता है. 

Child Care Tips: रक्त संचार में बदलाव

कई बार देखने में यह भी आता है कि शिशु के शरीर का रंग गुलाबी या नीला है. लेकिन इसकी वजह पीलिया या अन्य नहीं होती है, इसका कारण होता है रक्त संचार पूरी तरह से विकसित न होना. जैसे रक्त संचार सामान्य तरीके से होने लगता है. त्वचा का रंग अपने सामान्य रंग में आ जाता है. कई बार हार्मोन्स में भी उतार-चढ़ाव की वजह से भी शिशु का रंग बदलता है. जैसे हॉर्मोन्स स्थिर होते हैं, त्वचा का रंग भी स्थिर हो जाता है.