अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा अंधविश्वास एवं सामाजिक कुरीतियों केकगिलाफ़ चलाये जा रहे अभियान के अंतर्गत बाल विवाह के विरोध में जनजागरण अभियान चलाया गया जिसमें प्रदेश के अनेक स्थानों पर ग्रामीणों से संपर्क, बैठकें, सभाएं आयोजित की गई जिनमें ,अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति के उन्मूलन के लिए समाज के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है ।

शिक्षा का प्रचार प्रसार न होने जागरूकता की कमी , पुरानी परम्पराओ को पालन करने के नाम पर होने वाले बाल विवाहों को रोकना सभी जागरूक नागरिकों का कर्तव्य है, रामनवमीं से लेकर अक्षय तृतीया के तक अधिकाधिक संख्या में बाल विवाह संपन्न होते है जिनमे कई बार तो वर वधु बने बच्चे अंगूठा चूसते हुए माँ की गोद में बैठे रहते है तो अनेक मामलों में दस ग्यारह वर्ष की उम्र में ही शादी कर दी जाती है इस आयु में बच्चे न तो शारीरिक तथा मानसिक रूप से विवाह जैसी गंभीर जिम्मेदारी निभाने के लायक होते है।

बाल विवाह से बालिकाओ की पढाई लिखाई बंद हो जाती है बल्कि उन्हें कम उम्र से ही मातृत्व का बोझ उठाना पड़ता है जिसके लिए वे शारीरिक व मानसिक रूप से तैयार नहीं होती। बाल विवाह की प्रथा न ही धार्मिक रूप से सही है और न ही सामाजिक रूप से पुरातन भारतीय व्यवस्था में भी व्यक्ति के शिक्षा पूर्ण करने के बाद युवावस्था में ही विवाह कर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश को उचित बताया गया है किसी भी धर्मं ने नन्हे बच्चों की शादी को उचित नहीं ठहराया है बल्कि अल्पव्यस्क बालिकाओ की मृत्यु भी प्रसूति के समय हो जाती है। देश में राजस्थान उड़ीसा बिहार उत्तर प्रदेश हिमाचल प्रदेश मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में बाल विवाह संपन्न होते है छत्तीसगढ़ में बाल विवाह के हिसाब से 9 जिले संवेदनशील माने जाते हैं जिनमें रायपुर दुर्ग कवर्धा राजनांदगांव कोरिया महासमुंद कोरबा बिलासपुर रायगढ़ है.

छत्तीसगढ़ में बाल विवाह के संबंध में भारत के जनगणना महापंजीयक के द्वारा पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट में जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ में 203500 से अधिक बाल वधू में हैं जिसमें से 22700 की उम्र 14 वर्ष से कम है जनगणना के 2011 के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर जारी की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 10 से 19 वर्ष की उम्र की बालों की संख्या ग्रामीण अंचल में 160000 निकली वही शहरी क्षेत्रों में संख्या 37 हजार से अधिक थी। बाल विवाह को सामाजिक कुरीतियों की श्रेणी में रखा जा सकता है,बाल विवाह निषेध अधिनियम सर्वप्रथम 1929 में पारित किया गया बाद में इसमें तीन बार संशोधन भी हुए तथा नए रूप में 1 नवंबर 2007 से देशभर में लागू किया गया जिसके अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु की लड़की एवं 21 वर्ष से कम आयु के लड़के का विवाह गैर-कानूनी है और दोष सिद्ध होने पर दंडनीय अपराध है लेकिन आज भी अनेक क्षेत्रों में लोगों को इस एक्ट की कोई जानकारी नहीं है.

बाल विवाह से होने वाले दुष्परिणामों की फेहरिस्त लंबी है बाल विभाग को एक बड़े सामाजिक अभियान की आवश्यकता महसूस की जा रही है जिसे देशव्यापी स्तर पर चलाया जाए आमतौर पर रामनवमी और अक्षय तृतीया जैसे खास मौकों पर बाल विवाह रोकने के लिए कदम उठाए जाते हैं पुलिस लगा दी जाती है लेकिन इसके लिए सामाजिक जागरूकता के अभियान साल पर चलाए जाने की आवश्यकता है, समिति ग्रामीण अंचल में जनजागरण के कार्यक्रम आयोजित कर लोगों में चेतना जागृत करने के प्रयास करती है।

डॉ. मिश्र ने ग्रामीणों से अपील की है कि वे अपने आसपास अगर कोई भी नाबालिग बच्चे की शादी होते देखें तो तुरंत पुलिस ,प्रशासन एवं समिति को सूचित करें ताकि उस पर समय रहते समझाईश एवं कार्यवाही हो सके.