पंकज तिवारी, रायपुर। हम बचपन में बहुत से खेल खेला करते थे, लेकिन एक खेल हमें सबसे पसंदीदा होता था. भूख-प्यास भूल दिन-दिन भर खेला करते थे. आधुनिक समय ने ब”ाों के हाथों में इलेक्ट्रानिक गैजेटï्स थाम दिए. एक दशक पहले का बचपन हमारे परम्परागत खेलों का दौर हुआ करता था. उन्हीं यादों को एक बार फिर तरोताजा करने का समय है 14 नवंबर यानी बाल दिवस.
गिल्ली डंडा
गिल्ली-डंडा इस खेल के बारे में हम सभी जानते हैं. लकड़ी का डंडा और लकड़ी का ही गिल्ली. एक बड़े गोले के अंदर से डंडे की सहायता से गिल्ली को मारा जाता है. गिल्ली गोले के अंदर नहीं आती तब तक जितने वाला बार-बार गिल्ली को मारकर दूर भेजता है. पारी वाला फिर गिल्ली को गोले में डालने की कोशिश करता है.
बाँटी
कंचा को ही बाँटी कहा जाता है. दस,बीस, तीस, सौ तक गिनकर एक दूसरे के बाँटी को मारते हैं. जिनके सौ जल्दी हुए वे सभी जीत जाते हैं, जिसका सौ नहीं हो पाता वो हार जाता है. फिर कदम से नाप कर अपने बाँटी को दूर में रखता है. इस प्रकार खेल चलते रहता है. नहीं पड़ा तो पुन: खेल शुरू होता है फिर दस, बीस बोलकर एक-दूसरे के बाँटी को निशाना लगाते हैं.
भौंरा
भौंरा का खेल ब’चों का पसंदीदा खेल है हिंदी में इसे लट्टू कहा जाता है. इस खेल में लकड़ी के गोल टुकड़े में कील लगा होता जिसे रस्सी से लपेट कर फेंकते हैं जिससे भौंरा कील के सहारे गोल घूमने लगता है. इस खेल में एक दूसरे के घूमते भौरे को गिराना होता है.
बिल्लस
बिल्लस के खेल को आंगन में बिछे पत्थरों पर खेला जाता है. कभी-कभी जमीन में चौकोर चौकोर डिब्बा बनाकर भी खेलते हैं. इस खेल में घर (खाना) जितना होता है.
चांदनी
चांदनी का खेल खेलने के लिए एक दाम देने वाला होता है और बाकी उसके कहे निर्देशों को पूरा करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं. इस बीच में कोई उस एक्शन को नहीं कर पाता या उठ कर भागता है तो उसे छू देता है.
अटकन-बटकन
इस खेल में ब’चे आंगन परछी में बैठकर, गोलाकार घेरा बनाते है. घेरा बनाने के बाद जमीन में हाथों के पंजे रख देते है. गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होती है वह अपनी हथेली सीधी कर लेता है. इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है.
फुगड़ी
बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाली फुगड़ी लोकप्रिय खेल है. चार, छ: लड़कियां इक_ा होकर, ऊंखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है. जो थका वो आउट.
डंडा कोलाल
डंडा कोलाल गांव के चरवाहा ब’चों का खेल है. इस खेल को कम से कम &-10 तक की संख्या में खेला जा सकता है. जिसका डंडा कम दूरी तक जाता है, उसे दाम देना होता है. फिर हारने वाला अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर कर डंडे को हाथ में रखता है. बाकी लोग पीछे से उसके डंडे को अपने डंडे से फेकते-फेकते दूर ले जाते हैं. दाम देने वाला उन लोगों को छूने का प्रयास करता है.
लंगड़ी
इसमें खिलाड़ी एंडी मोड़कर बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है. जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है बीच में उठकर कहता है.
खुड़वा (कबड्डी)
खुड़वा पाली दर पाली कबड्डी की भांति खेला जाने वाला खेल है. दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न है. दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है. शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा खिलाडिय़ों के पास जाते हैं. चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते हंै. नाम चयन के आधार पर दल बन जाता है. इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है.
डांडी पौहा
डांडी पौहा गोल घेरे में खेला जाने वाला स्पद्र्धात्मक खेल है. गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना दिया जाता है. खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते हंै. एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता है. खिलाडिय़ों के बीच लय बद्ध गीत होता है. गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है. नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से बाहर आ जाते हैं और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दूसरे को अपनी ओर करने के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता वह जीतता है.
बित्ता कूद
दो-दो की जोड़ी में खेला जाने वाला पैर और बित्ते की मदद से ऊंचाई को बढ़ाते जाते हैं. बाकी जोड़ी बारी-बारी से उस ऊंचाई को कूदते हैं. यदि किसी का साथी कूद नहीं पाता या कूदते समय टच हो जाता है तब उसका साथी उसके बदले कूदता है.
परी-पत्थर, अमरित-बिस
परी-पत्थर,अमरित-बिस ये दोनों खेल एक ही है इसमें कोई अंतर नहीं है. जिसको पारी देना होता है वह किसी को छूकर पत्थर या बिस बोलता है ऐसे स्थिति में पत्थर जैसे खड़ा रहना होता है.
गोटी
इस खेल को ज्यादातर लड़कियाँ ही खेलती हैं. इस खेल को दो तरीके से खेला जाता है और बैठकर खेला जाता है. बहुत सारे कंकड़ को बिखेरकर बारी-बारी से बीनते हैं. कंकड़ हिला रहेगा उतने को दूसरे को देना पड़ता है. दूसरे से हिला तो पहले वाले को देना पड़ता है.
फल्ली
इस खेल को पाँच लोग मिलकर खेलते हैं. बीच में खपरैल का टुकड़ा रखा होता है, जिसे बचाते हुए पारी वाला चारो तरफ को फल्ली बोलते हुए पूरा करता है. इस बीच में चारो खानों में खड़े खिलाड़ी उस खपरैल को चुराकर अपने अन्य तीन साथियों को बांटता है. यदि दाम देने वाला उसे छू लेता है तो उसे दाम देना पड़ता है.
नदी-पहाड़, अंधियारी-अंजोरी
नदी पहाड़ का खेल सामूहिक खेल है इस खेल को खेलने के लिए ऊँचा और नीचा स्थान का होना जरूरी रहता है. नीचे वाला स्थान नदी और ऊपर वाला स्थान पहाड़ कहलाता है. पारी से पूछा जाता है,कि ‘नदी लेबे या पहाड़’ फिर पारी वाला नदी कहता है ,तो सभी को पहाड़ वाले स्थान पर जाना होता है. और पहाड़ बोलने पर नदी वाले स्थान पर जाना होता है. इस बीच जाते समय किसी को छू लेता है तो उसे दाम देना पड़ता है.
खिलामार
खिलामार खेल में एक कील को पारी वाले को छोड़कर सभी बारी बारी से मार मारकर जमीन में गड़ाते हैं और फिर सभी आसपास छिप जाते हैं. पारी वाला कील को जमीन से निकालता हैं और सभी को ढूंढता है. जो पहला मिला होता है उसे दाम देना पड़ता है. यदि कोई नजरों से बचकर कील के पास बने गढ्ढे में थूक देता है तो पुन: उसे ही दाम देना होता है.