पंकज सिंह भदौरिया,दंतेवाड़ा। जिले के आदिवासी बच्चों के लिए सरकार गीदम में अटल बिहारी बाजपेई एजुकेशन सीटी हब के नाम से शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी संस्था चला रही है. एजुकेशन हब के बच्चों ने सिर्फ लिखना ही नहीं सीखा बल्कि उस लिखे हुए को अभिव्यक्त करने के लिए खुद का एक अखबार भी निकाला. मौका था एनवी पोस्ट संस्था और स्वराज एक्सप्रेस की ओर से आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का.
मीडिया साक्षरता विषय पर गीदम के जावंगा एजुकेशन हब में शनिवार को यह कार्यशाला शुरू हुई थी. आडोटोरियम सभागार में हुई कार्यशाला में बच्चों को लिखने, उसे अभिव्यक्त करने और सही व फेक न्यूज को किस तरह समझे इस पर विस्तार से चर्चा की गई है.कार्यशाला का उद्देश्य छात्रों की प्रतिभा को बाहर लाना है. जिससे वे अपनी संस्कृति, परंपराओं और स्कूल में हो रहे कार्यक्रमों की खबरें खुद के ही अखबार में प्रकाशित कर सकें जो बाहर की दुनिया को उनकी सभ्यता से अवगत करा सकें. इस दौरान बच्चों ने खुद ही खबरें लिखीं. कार्टून बनाए. कविताएं लिखीं और इन सभी को समायोजित कर दो पेज का पहला अखबार निकाला.
कार्यशाला के दौरान एनवी पोस्ट के फाउंडर पंडित अमनदीप, स्वराज एक्सप्रेस के पत्रकार सत्या राजपूत व दन्तेवाड़ा के पत्रकार पंकज सिंह भदौरिया और अतिथि वक्ता के रूप में पहले दिन अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि मीडिया साक्षरता केवल इंटरनेट से सूचना पाने और कुछ सवालों के सिर्फ तथ्य तलाशने तक ही सीमित नहीं है। यह एक सक्रिय, क्रिटिकल माइंड और सही सवाल पूछने के नजरिए को बढ़ाने का एक पूरा तरीका है। साथ ही, ये भी कि ये विभिन्न माध्यमों से मिलने वाली सभी तरह की खबरों का सोच-समझकर उपयोग करना भी सीखाता है। नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में पढ़ रहे छात्रों को खुद के इन्फर्मेशन आॅर्डर बनाने की जरूरत है। वक्ताओं ने बच्चों को अखबार के महत्व के बारे में बताया और साथ ही सिटीजन जर्नलिज्म के बारे में भी जागरूक किया।
इससे पहले संस्था के पदाधिकारी ने कार्यशाला का शुभारंभ किया. कार्यशाला बहुत ही उपयोगी साबित हुई. यह उद्दश्यपूर्ण भी रही. इस दौरान गणमान्य अतिथि के रूप में संस्था के पदाधिकारियों के साथ जिले के अधिकारी में बीआर कोवासी शिक्षा विभाग के मौजूद रहे.
शिक्षा विभाग अधिकारी बीआर कोवासी ने कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के बारे में बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी भी मीडिया जगत से जुड़े लोगों की ही है. इसलिए हम चाहते हैं कि बच्चे कम से कम वो तो व्यक्त ही कर पाएं जो वो महसूस करते हैं, भले ही इसके लिए माध्यम का अलग हो.