सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त को यह निर्देश दिया कि गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार के खिलाफ पंजाब और राजस्थान की जेलों में कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा. मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश दिया. इस पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की यह पीठ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा IPS प्रबोध कुमार की अध्यक्षता वाली SIT को इंटरव्यू से संबंधित मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश के खिलाफ दायर चुनौती पर सुनवाई कर रही थी. पिछले वर्ष दिसंबर में उच्च न्यायालय ने लॉरेंस बिश्नोई के इंटरव्यू के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने और IPS अधिकारी प्रबोध कुमार के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (SIT) द्वारा जांच कराने का आदेश दिया था.
उच्च न्यायालय ने जेल परिसर में कैदियों द्वारा मोबाइल फोन के उपयोग से संबंधित मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश पारित किया था. कोर्ट ने लॉरेंस बिश्नोई के टीवी इंटरव्यू की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय SIT का गठन किया था, ताकि अधिकारियों की संलिप्तता का पता लगाया जा सके. लॉरेंस बिश्नोई 2022 में गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के आरोपियों में से एक है. पिछले वर्ष मार्च में एक निजी समाचार चैनल ने बिश्नोई के दो साक्षात्कार प्रसारित किए थे.
आज, मुख्य न्यायाधीश ने पत्रकार जगविंदर पटियाल द्वारा दायर रिट याचिका पर नोटिस जारी किया. उन्होंने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि पत्रकार का उद्देश्य अपराधियों को बेनकाब करना था, लेकिन जेल परिसर के भीतर इंटरव्यू आयोजित करना जेल के नियमों का गंभीर उल्लंघन है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “एक हद तक, शायद आपके मुवक्किल ने इंटरव्यू की मांग करके जेल के कुछ नियमों का उल्लंघन किया हो, लेकिन यह तथ्य कि यह जेल में भी हो सकता है, एक बहुत गंभीर मामला है.”
इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि इंटरव्यू ने जेलों में मौजूद ‘सड़ांध को उजागर करने’ में मदद की. उन्होंने कहा कि पत्रकार ने खोजी पत्रकारिता के तहत एक स्टिंग ऑपरेशन किया, जिसमें दिखाया गया कि कैसे बिश्नोई कनाडा में गैंगस्टर गोल्डी बरार के संपर्क में था और काले हिरण मामले के संदर्भ में सलमान खान के खिलाफ हमले की साजिश रच रहा था.
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि क्या इससे जेल प्रतिबंधों के उल्लंघन को उचित ठहराया जा सकता है और क्या इससे उच्च न्यायालय द्वारा जेलों में सुरक्षा खतरों पर उठाई गई चिंताओं को नकारा जा सकता है. उन्होंने कहा, “समस्या और तथ्य यह है कि आप जेल तक पहुंच हासिल कर लेते हैं और जेल से इंटरव्यू करते हैं, क्या आप ऐसा कर सकते हैं? क्या हम कह सकते हैं कि उच्च न्यायालय गलत है? कारावास के अपने कुछ प्रतिबंध होते हैं.” खोजी पत्रकारिता का जिक्र करते हुए रोहतगी ने जवाब दिया, “अगर आप मैसेंजर को ही मार देंगे तो सड़ांध को कौन उजागर करेगा?” फिलहाल न्यायालय ने मामले में नोटिस जारी किया है और पंजाब और राजस्थान राज्यों के साथ-साथ केंद्र से भी जवाब मांगा है.
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