रायपुर। आदिवासियों की आवश्यकता के अनुरूप अब जंगलों का विकास होगा. इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से पर्यावरण के अनुकूल और आदिवासियों के पोषण व जीविकोपार्जन में सहायक पौधे लगाने वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शनिवार को अपने निवास कार्यालय में आयोजित वन विभाग के कामकाज की समीक्षा बैठक ली. इस दौरान उन्होंने पौध रोपण अभियान के दौरान पर्यावरण के साथ-साथ वनवासियों के हितों का भी ध्यान रखने को कहा जिससे उनके जीवन में सुधार और जीवकोपार्जन में मदद मिले. वन विभाग ने इस वर्ष प्रदेश में विभिन्न मदों के अंतर्गत पांच करोड़ एक लाख पौधे के रोपण का लक्ष्य रखा है.

बैठक में वनमंत्री मोहम्मद अकबर, मुख्य सचिव आरपी मण्डल, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी, वन विभाग के सचिव जयसिंह म्हस्के और मुख्यमंत्री सचिवालय में उप सचिव सौम्या चौरसिया और वरिष्ठ विभागीय अधिकारी उपस्थित थे.

मुख्यमंत्री बघेल ने बैठक में कहा कि जिन हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टे दिए जा रहे हैं उन्हें वृक्षारोपण के साथ जोड़ा जाना चाहिए और इन हितग्राहियों की जमीन पर मनरेगा और वन विभाग की योजनाओं के तहत अभियान चलाकर महुआ, हर्रा, बहेरा, आंवला, आम, इमली, चिरौंजी जैसे अलग-अलग प्रजातियों के फलदार वृक्ष लगाए जाएं, इससे भी जंगल बचेगा और हितग्राही को आमदनी भी होगी.

उन्होंने कहा कि इन हितग्राहियों को तत्काल आय का साधन उपलब्ध कराने के लिए उनकी जमीन पर तीखुर, हल्दी और जिमीकांदा भी लगाया जाना चाहिए, जिससे उन्हें इन उत्पादों के जरिए जल्द आय का साधन मिल सके. उन्होंने कहा कि आज आदिवासी जंगलों से विमुख हो रहे हैं, क्योंकि जंगल उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. हमें जंगलों को वनवासियों के लिए रोजगार और आय का जरिया बनाना होगा.

वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने बैठक में बताया कि इस वर्ष तेंदूपत्ता तोड़ाई के पारिश्रमिक का भुगतान सीधे हितग्राहियों के खाते में करने का निर्णय लिया गया है. प्रदेश में चालू वर्ष के दौरान तेंदूपत्ता संग्रहण से 12 लाख 53 हजार परिवारों को लगभग 649 करोड़ रुपए का पारिश्रमिक मिलेगा. उन्होंने बताया कि प्रदेश के सभी जिलों में होने वाली वनोपजों की जानकारी हासिल करने सर्वे कराया जा रहा है अगले तीन से 4 वर्षों में लघु वनोपजों की ऑनलाइन खरीदी की व्यवस्था तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है.

बैठक में बताया गया कि राज्य में अब तक लगभग 165 करोड़ रूपए की राशि के 4 लाख 11 हजार 222 मानक बोरा तेन्दूपत्ता का संग्रहण हो चुका है. बस्तर में इमली की प्रोसेसिंग के माध्यम से लगभग 12 हजार महिलाएं जुड़ी हैं, इन्हें हर माह ढाई हजार से 3 हजार रुपए की आय हो रही है. चिरौंजी, रंगीली लाख, कुसमी लाख, शहद, महुआ बीज संग्रहण और प्रोसेसिंग के माध्यम से 8580 महिलाओं को काम मिला है. जशपुर में महुआ से सेनेटाइजर बनाया जा रहा है.