रायपुर. मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मंगलवार को यहां अपने निवास कार्यालय में छत्तीसगढ़ के मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की पहली आधिकारिक रिपोर्ट का विमोचन किया। राजधानी रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा यह रिपोर्ट तैयार की गई है। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सबका मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य की तरह महत्वपूर्ण है। सर्वे रिपोर्ट में की गई अनुशंसाओं पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पूरी गंभीरता से ध्यान दिया जाएगा और जनता के मानसिक स्वास्थ्य को अधिक बेहतर बनाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने सर्वे रिपोर्ट की सभी सिफारिशों को प्रदेश के हित में काफी उपयोगी और महत्वपूर्ण बताया है।

बता दें कि सर्वे रिपोर्ट में एक सिफारिश यह भी की गई है कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के अंतर्गत राज्य के लिए भी एक विशेष मानसिक स्वास्थ्य नीति तैयार की जानी चाहिए। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अंतर्गत यह सर्वेक्षण छत्तीसगढ़ के तीन जिलों-रायपुर, कबीरधाम और जांजगीर-चांपा के 60 गांवों में यह सर्वेक्षण किया गया था।

मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट की इस अनुशंसा पर भी अपनी सहमति जताई कि मानसिक स्वास्थ्य की राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य के एजेंडे में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बेंगलुरू (कर्नाटक) स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य और न्यूरो विज्ञान संस्थान को समन्वय केन्द्र बनाया गया था। वर्ष 2015-16 में एक जैसी पद्धति का उपयोग करके छत्तीसगढ़ सहित देश के 12 राज्यों में यह सर्वेक्षण किया गया। यह भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर पहला राष्ट्रीय स्तर का प्रतिनिधि सर्वेक्षण है। छत्तीसगढ़ में इस सर्वेक्षण के लिए एम्स रायपुर को भागीदार बनाया गया था।

92.3 प्रतिशत लोगों ने दिया जवाब…

यह सर्वेक्षण रायपुर एम्स के मनोचिकित्सा विभाग और सामुदायिक तथा परिवार चिकित्सा विभाग की टीम द्वारा किया गया। सर्वेक्षण के लिए फील्ड डेटा संकलन जरूरी था। इसके लिए दो महीने का प्रशिक्षण डेटा संग्राहकों को दिया गया। इसके बाद डेटा संग्रहण का कार्य 28 दिसम्बर 2015 से 08 मई 2016 के बीच किया गया। सर्वेक्षण के दौरान तीनों जिलों (रायपुर, कबीरधाम और जांजगीर-चांपा) में कुल 722 परिवारों के दो हजार 841 वयस्क सदस्यों का साक्षात्कार लिया गया। उन्हें नैदानिक प्रश्नावली दी गई, जिसमें नशीले पदार्थों के उपयोग, विकलांगता, उपचार की मांग, व्यवहार और मानसिक बीमारियों के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का आंकलन किया गया। इनमें से 92.3 प्रतिशत लोगों ने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर सवालों के जवाब दिए। रिपोर्ट में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ राज्य में सर्वेक्षण के दौरान चिन्हांकित प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में तम्बाकू उपयोग विकार (29.86 प्रतिशत), शराब उपयोग विकार (7.14 प्रतिशत), अवसाद ग्रस्त विकार (1.59 प्रतिशत) और न्यूरोटिक तथा तनाव संबंधी विकार (2.38 प्रतिशत) पाया गया।

1 प्रतिशत लोगों में पाया गया अवसाद…

गंभीर मानसिक विकार (साईकोसिस, द्विध्रुवीय विकार, साईकोसिस के लक्षणों के साथ अवसाद) लगभग एक प्रतिशत लोगों में पाया गया, जबकि सामान्य मानसिक विकार का प्रसार 11.22 प्रतिशत था। शहरों में रहने वालों के बीच मानसिक विकार का बोझ तुलनात्मक रूप से ज्यादा था। सामान्य मानसिक विकार जहां ग्रामीण क्षेत्रों में 10.58 प्रतिशत पाया गया, वहीं उसकी तुलना में शहरी क्षेत्रों में यह 13.08 प्रतिशत लोगों में था। सर्वे में पाया गया कि राज्य में किसी भी मानसिक विकृति का वर्तमान प्रसार 11.66 प्रतिशत था।  रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर छत्तीसगढ़ राज्य में लगभग 20 लाख वयस्कों में किसी न किसी प्रकार की मानसिक विकृति होने का अनुमान लगाया जा सकता है।

रिपोर्ट में एम्स की ओर से यह भी सिफारिश की गई है कि छत्तीसगढ़ राज्य की भावी मानसिक स्वास्थ्य नीति के एक हिस्से के रूप में गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के लिए उचित नियामक ढांचे और उनकी गतिविधियो का रोडमैप विकसित किया जाना चाहिए। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं के संचालनालय में मानसिक स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए भी एक यूनिट की स्थापना की जानी चाहिए।  रिपोर्ट में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र मे काम कर रहे संस्थानों और एनजीओ में काम कर रहे डॉक्टरों की दक्षता बढ़ाने की भी जरूरत पर भी बल दिया गया है और इसके लिए अनुशंसा करते हुए कहा गया है कि इस प्रयोजन से एम्स रायपुर को एक नोडल केन्द्र के रूप में चिन्हांकित किया जा सकता है।

प्रचार-प्रसार सामग्री तैयार की जानी चाहिए…

सर्वे रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेजों में मनोचिकित्सा से संबंधित पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम शुरू करने की भी सिफारिश की गई है। यह भी कहा गया है कि स्थानीय भाषाओं में लोक शिक्षण की दृष्टि से मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित प्रचार-प्रसार सामग्री तैयार की जानी चाहिए, ताकि समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया जा सके और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज में जागरूकता लायी जा सके। इसके लिए जागरूकता अभियानों की संख्या बढ़ाने की भी जरूरत बतायी गई है।

मानसिक बीमारियों को लेकर हैं भ्रांतियां…

रिपोर्ट में कहा गया है कि हम में से अधिकांश लोगों को अपने जीवन में कभी न कभी किसी न किसी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएं अल्पकालीन या दीर्घकालीन हो सकती है। मानसिक बीमारियां भी अन्य बीमारियों की तरह होती हैं, लेकिन समाज में मानसिक बीमारियों को लेकर कई भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने जरूरत है।  पिछले पांच दशकों में भारत और अन्य देशों में मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान कार्य जारी हैं। हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में सामान्य मानसिक विकार, शराब और नशीली दवाओं के दुरूपयोग तथा अवसाद जैसी समस्याओं में वृद्धि देखी गई है। हमारे देश की वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मांग और आपूर्ति के अनुपात को और बेहतर करने की जरूरत है। सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की सफलता के लिए यह बहुत जरूरी है। देश में मानसिक स्वास्थ्य पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि आंकड़े नहीं थे। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वास्थ्य और न्यूरोविज्ञान संस्थान बेंगलुरू के माध्यम से यह सर्वेक्षण करवाया गया।

रिपोर्ट विमोचन के अवसर पर एम्स रायपुर के निदेशक प्रोफेसर नितिन नागरकर, अधिष्ठाता प्रोफेसर धनेरिया, उप निदेशक (प्रशासन)  नीरेश शर्मा और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (छत्तीसगढ़) के मुख्य अन्वेषक डॉ. लोकेश कुमार सिंह भी मौजूद थे।