Rajasthan News: राजस्थान कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सियासी अदावत जगजाहिर है। अब पार्टी में दो नए पावर सेंटर बन रहे हैं, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली। इन दोनों के बीच शीतयुद्ध की चर्चा जोरों पर है, जिसे राजनीतिक विश्लेषक पार्टी हित में नहीं मान रहे। हालांकि, कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा दावा कर रहे हैं कि सबकुछ ठीक है, लेकिन सियासी संकेत कुछ और ही इशारा कर रहे हैं।

डोटासरा और जूली में टकराव की वजह?

कांग्रेस के जानकारों के अनुसार, विधानसभा चुनाव के बाद डोटासरा नेता प्रतिपक्ष के प्रबल दावेदार थे। उन्होंने इसके लिए दिल्ली में जोरदार लॉबिंग भी की, लेकिन गांधी परिवार के करीबी एक नेता ने खुलकर जूली के पक्ष में लॉबिंग की और बाजी जूली के हाथ लगी।

इसके बाद डोटासरा ने विधानसभा में खुद को अघोषित नेता प्रतिपक्ष के रूप में पेश किया, जिससे जूली असहज महसूस करने लगे। मौजूदा बजट सत्र में मंत्री द्वारा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दादी’ कहने के विवाद के दौरान हंगामा हुआ, जिसके बाद डोटासरा सहित पांच विधायकों को निलंबित कर दिया गया।

सदन में माफी पर बढ़ी खटास

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, डोटासरा की नाराजगी तब और बढ़ी, जब जूली और मुख्य सचेतक रफीक खान ने डोटासरा से बिना चर्चा किए विधानसभा में माफी मांगने का फैसला ले लिया। इसके बाद से डोटासरा ने सदन से दूरी बना ली।

डोटासरा का विधानसभा से दूरी बनाना

निलंबन रद्द होने के बावजूद डोटासरा विधानसभा नहीं पहुंचे। उन्होंने मीडिया से कहा, “मैं चार बार का विधायक हूं, बिना बोले नहीं रह सकता, लेकिन विधानसभा जाऊंगा तो पहले मीडिया को जरूर बताऊंगा।” मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस मुद्दे पर डोटासरा की तुलना रूठे हुए ‘फूफा’ से कर दी, जिससे मामला और गरमा गया।

जूली का नाराजगी से इनकार

टीकाराम जूली ने कहा, “हमारे बीच कोई नाराजगी नहीं है। सभी फैसले आपसी सहमति से हुए हैं। भाजपा अफवाहें फैला रही है, लेकिन हम एकजुट हैं और भाजपा को सदन से लेकर सड़क तक घेर रहे हैं।”

गुटबाजी का असर कांग्रेस पर?

डोटासरा और जूली के बीच खटास का सीधा असर कांग्रेस विधायकों के भीतर गुटबाजी के रूप में दिख रहा है। गहलोत समर्थक विधायक मुख्य सचेतक रफीक खान का पूरा समर्थन नहीं कर रहे। वरिष्ठ पत्रकार मनीष गोधा के अनुसार, “जूली और डोटासरा की टकराहट पार्टी के लिए चिंता का विषय है। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस को साढ़े तीन साल संघर्ष करना होगा। अगर गुटबाजी जारी रही, तो पार्टी को आगामी निकाय और पंचायत चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।”

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