पवन दुर्गम,बीजापुर। दक्षिण बस्तर के जंगल आए दिन बम, बंदूक और बारूदों के धमाकों से गूंजते रहते हैं. यहां हर जंगली रास्ता पुलिस-नक्सली मुठभेड़ों का गवाह है. करीब 3 दशकों से माओवादियों ने यहां अपनी गहरी पैठ और धमक बना ली है. घने जंगल और जंगलों में निवासरत आदिवासी समुदाय में माओवादी विचारधारा की अच्छी खासी पकड़ देखी जाती है. ऐसे में यहां विकास दूर की कौड़ी रही है.

बदलते वक्त के साथ सरकारें अब उन इलाकों तक पहुंचने की जुगत में लगती दिख रही हैं. आज बीजापुर के कलेक्टर रितेश अग्रवाल, एसपी कमलोचन कश्यप, डीआईजी सीआरपीएफ कोमल सिन्हा ने नक्सलियों की मांद कहे जाने वाले मिरतुर-गंगालूर बेचापाल का दौरा करने पहुंचे. अतिसंवेदनशील क्षेत्र गंगालूर- मिरतुर सड़क माओवाद की जकड़ वाला इलाका है, जहां फ़ोर्स की जबरदस्त तैनाती के बीच सड़क का काम जारी है. सड़क सुरक्षा में लगे जवानों से तीनों अधिकारियों ने मिलकर घने जंगली इलाको में उनका हौसला बढ़ाया.

दौरे के दौरान कलेक्टर, एसपी और डीआईजी ने ग्रामीणों से मुलाकात की. उन्होंने बेचापाल में ग्रामीणों से रूबरू होकर स्कूल, आंगनबाड़ी, पेयजल सहित बिजली, स्वास्थ्य आदि मूलभूत सुविधाओं और पेंशन के बारे में जानकारी ली.

बता दें बीते कुछ वक्त से जिले के अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में जहां माओवादी पकड़ ज्यादा है और विकास नहीं हुआ है. उन सड़कों के निर्माण पर सरकार और प्रसाशन का ज्यादा फोकस नजर आता है. तेलांगाना से लगे पामेड़ तक सड़क बनकर तैयार है. जबकि बीजापुर से पामेड़ को जोड़ने वाली सीधी सड़क पर धर्माराम के पास पुल और सड़क का काम प्रारंभिक स्तिथि में है.