नई दिल्ली. कांग्रेस के चिंतन शिविर में पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के क्षेत्रीय दलों पर सवाल उठाए जाने और बिहार कांग्रेस नेताओं के गठबंधन के नाम पर समझौता नहीं करने के साफ संदेश के बाद यह तय माना जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस अब बिना राजद के आगे बढ़ने की रणनीति पर चलेगी. वैसे, देखा जाए तो पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से दोनों दलों के रिश्तों में दरार आई है. जो समय के साथ और गहराते चली जा रही है. विधानसभा चुनाव के बाद तीन सीटों पर हुए उपचुनाव हो या विधानपरिषद के चुनाव, दोनों पार्टिया अलग-अलग प्रत्याशी उतार चुकी हैं.
स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद चुनाव के दौरान राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने हालांकि कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन बना रहेगा. इधर, चिंतन शिविर के बाद ये तय माना जा रहा है कि भविष्य में कांग्रेस खुद को मजबूत कर अकेले चुनाव मैदान में उतरेगी. हालांकि राजद इस बयान पर सीधे तौर पर तो कांग्रेस पर निशाना नहीं साध रही है लेकिन उसे आइना दिखाने से भी नहीं चूक रही.
सह-यात्री के विचार पर समझौता करना चाहिए- राजद
राजद नेता मनोज झा कहते हैं कि कांग्रेस अगर आंकड़ों पर नजर डालेगी तो वे अपना बयान वापस ले लेंगे. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से मिलकर सरकार चला रही है. उन्होंने राजद नेता तेजस्वी यादव की सलाह को दोहराते हुए कहा कि 220-225 सीटें हैं, जहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी लड़ाई है. कांग्रेस को अन्य जगहों को क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ देना चाहिए और एक सह-यात्री के विचार पर समझौता करना चाहिए.
‘परिवार’ के कारण कांग्रेस का नेतृत्व नष्ट
इधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल कहते हैं कि बिहार कांग्रेस के नेताओं का रवैया चिंतन शिविर में आश्चर्यजनक रहा है. कांग्रेस ‘परिवार’ के समक्ष पहली बार हिम्मत दिखाते हुए बिहार कांग्रेस के नेताओं ने राजद का साथ छोड़ने की सिफारिश की है. उन्होंने कहा कि ‘परिवार’ के कारण ही बिहार में राजद लगातार मजबूत होती गई और कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व पूरी तरह से नष्ट, भ्रष्ट और ध्वस्त हो गया.
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