विनोद दुबे, रायपुर। अविभाजित मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री, राज्यपाल, पार्टी के भीतर दो दशक तक राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और महासचिव जैसे अहम पदों की जिम्मेदारी निभाने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा का सोमवार को निधन हो गया। वोरा ने 93 साल की उम्र में दिल्ली के एस्कॉर्ट हास्पिटल में अंतिम सांस ली।
मोतीलाल वोरा एक ऐसे नेता थे जो पूर्व पीएम राजीव गांधी, पीवी नरसिंहराव और सोनिया गांधी के बेहद करीबी नेताओं में से एक रहे हैं। वोरा के सियासी सफर की शुरुआत एक पार्षद के रुप में हुई। प्रज्ञा समाजवादी पार्टी से 1968 में उन्होंने दुर्ग से पार्षदी का चुनाव जीता। उन दिनों वोरा के सितारे बुलंदियों पर थे। 1972 में विधानसभा चुनाव के ऐन पहले कांग्रेस को दुर्ग में एक नए चेहरे की तलाश थी और वो चेहरा बने मोतीलाल वोरा। वोरा प्रज्ञा समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। पार्षद रहते-रहते उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और उसमें जीत भी हासिल की। इस तरह से वोरा के सियासी सफर की जो शुरुआत हुई तो वो लगातार जारी रही।
इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में जहां कांग्रेस के कई बड़े-बड़े दिग्गजों की हार हुई वहीं मोतीलाल वोरा ने दुर्ग से दुबारा जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। वोरा के बढ़ते कद को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उन्हें अपने मंत्री मंडल में जगह दी और उन्हें राज्य मंत्री बनाते हुए उच्च शिक्षा विभाग का दायित्व सौंपा। दो साल बाद ही उन्हें अर्जुन सिंह ने कैबिनेट मंत्री बना दिया।
साल 1985 में अर्जुन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर मध्यप्रदेश में जीत हासिल की। अर्जुन सिंह इस दौरान महज दो दिन ही मुख्यमंत्री रहे। राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को पंजाब का राज्यपाल बना दिया और उनके विश्वास पात्र मोतीलाल वोरा को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी। वोरा तीन साल तक मुख्यमंत्री रहे। 1988 में अर्जुन सिंह की राज्य में वापसी हुई और चुरहट लॉटरी कांड में नाम आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इससे पहले 14 फरवरी 1988 में केंद्र के स्वास्थ्य परिवार कल्याण और नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाला। अप्रैल 1988 में मोतीलाल वोरा राज्यसभा के लिए चुने गए।
तकरीबन एक साल बाद मोतीलाल वोरा दुबारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 25 जनवरी 1989 से 8 दिसंबर 1989 तक उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का कमान संभाला।
दिल्ली की राजनीति में अपनी पैठ जमा चुके वोरा को नरसिंह राव ने 1993 में यूपी का राज्यपाल बनाया। तीन साल तक राज्यपाल रहने के बाद फिर से वे सक्रिय राजनीति में लौट आए। 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें राजनांदगांव सीट से टिकट दिया। राजनांदगांव से चुनाव लड़ते हुए उन्होंने यहां भी जीत हासिल की। 1999 में हुए मध्यावधि चुनाव में वे डॉ रमन सिंह से चुनाव हार गए। 4 साल बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया।
वोरा कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक कोषाध्यक्ष भी रहे। तकरीबन 17 साल तक कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के बाद उनकी ढलती हुई उम्र देखकर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनसे यह अहम जिम्मेदारी वापस ले ली।
चुना पत्रकारिता को पेशा
राजस्थान के नागौर में जन्म लेने वाले मोतीलाल वोरा की शिक्षा अविभाजित मध्यप्रदेश और अब के छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और कोलकाता में हुई। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता जगत में अपना कदम रखा। नवभारत टाइम्स सहित कई अखबारों में खबर भेजते-भेजते उन्होंने राजनीति में अपना कदम रखा।