अस्पताल हाउसफुल, बेड खाली नहीं. अब न फूल वर्षा, घंटी-थाली नहीं. कोरोना का ये नया स्ट्रैन है. फिर से लॉकडाउन, सब बैन हैं. ज्यादातर राज्यों में हालात बेकाबू है. लेकिन बंगाल में जाने कोरोना के खिलाफ कैसा काला जादू है. बड़ी-बड़ी रैलियाँ, हजारों की भीड़, नेताओं के चेहरे न मास्क, न दो गज की दूरी है. यहाँ आयोग मजबूर और चुनाव जरूरी है. जी हाँ साहब चुनाव जरूरी है. कोरोना फिलहाल जैसे यहाँ पर छू मंतर है. गजब का सिस्टम, गजब का परजातंतर है.

देखिए शिकायत मत करिएगा. सवाल न पूछिएगा. हम जो कड़े कदम हो सकते हैं सब उठा रहे हैं. कोरोना से बचने ही तो टीका लगा रहे हैं. जितना संभव है वो सब कर रहे हैं. यहाँ तक की अब बोर्ड परीक्षा भी रद्द कर रहे हैं. लेकिन चुनाव रद्द नहीं होगा, रैलियाँ रद्द नहीं होगी, सभा कराएंगे. भीड़ बुलवाएंगे, नारे लगवाएंगे. और अंत में यह भी कहेंगे. कोरोना से बचकर रहना है. याद रखिए वोट हमें ही करना है.

वोट..! जी हाँ वोट..! मत..मतदान…! लोकतंत्र में सबसे बड़ा काम. इसी वोट के जरिए नेता, विधायक, मंत्री चुने जाते हैं, सरकार चुनी जाती है. लेकिन चुनने के बाद, वे कहाँ ? कब ? आम जन की सुनी जाती है. सुनी जाती तो वे अपने मन का न करती. कोरोना संकट में काम ढंग का करती. कई राज्यों में कोरोना से दुर्गति है. चीरघरों में लाशें यहाँ-वहाँ पड़ी हैं. श्मशान घाट में दिन-रात चिताएं जल रही हैं. व्यवस्था अब संभाले नहीं संभल रही है.

ये त्रासदी बहुत ही भीषण है. आँखों के सामने मरण ही मरण है. रोते-बिलखते परिजन, पसरा सन्नाटा और मातम है. ये विपदा, ये विपत्ति, ये संकट जाने कौन हरेगा ? हे ईश्वर ! या अल्लाह तू कुछ करेगा ? आस्था और मनौती के साथ यही सवाल अब हर कोई कर रहा है. क्योंकि यहाँ हर कोई लड़ रहा है…डर रहा है.. कहते हैं डर के आगे जीत है. बस अब एक नई सुबह की उम्मीद है.

–  वैभव बेमेतरिहा