सुप्रिया पांडेय, रायपुर। कोरोना वायरस ने मानव जीवन में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया है. आदमी के खान-पान से लेकर आचार-व्यवहार तक में आई तब्दीली तीज-त्योहारों तक पहुंच गई है. रंग और उल्लास का पर्व होली भी इससे अछूता नहीं है. सार्वजनिक आयोजनों पर लगे प्रतिबंध से सबसे ज्यादा नुकसान नगाड़ा बनाने वालों का हो रहा है, जिनकी रोजी-रोटी इसी पर टिकी है.

होली के करीबन महीनेभर पहले ही राजधानी के कालीबाड़ी इलाके में नगाड़े बेचने वालों का जमावड़ा शुरू हो जाता है. नगाड़े बनाने वाले दूर-दराज के इलाकों से आते हैं, इसलिए वे परिवार के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था के साथ आते हैं. पुरखों से करते चले आ रहे नगाड़ा बनाने का काम में आमदनी ऊपर-नीचे हो जाया करती थी, लेकिन इस साल जैसे हालात नहीं थे. इस साल को साजो-सामान को लाने-ले जाने का किराया तक निकलना मुश्किल नजर आ रहा है.

डोंगरगढ़ से नगाड़ा लेकर आए अशोक अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि अब तक कोई बिक्री नहीं हुई, और अब तो कलेक्टर ने भी मना कर दिया कि नगाड़े नहीं बजाएंगे. इस हालात में हम क्या करें समझ नहीं आ रहा है. किस मुंह से घर जाएंगे, और परिवार वालों को क्या कहेंगे. खाने-पीने के लाले पड़ेगें वो अलग.

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अनिता बाई कहती हैं कि साल के दो दिनोंं के लिए हम सालभर मेहनत करते हैं. लेकिन इन दो दिन के लिए भी बिक्री नहीं होगी, तो हम क्या करेंगे. हम यहाँ अपने रहने-खाने की व्यवस्था जैसे-तैसे कर रहे हैं. हमारी होलिका दहन की रात वापसी होती थी, लेकिन जैसे हालात हैं, उसमें हम क्या करें समझ नहीं आ रहा है.

अंजना बाई हठीले ने कहती हैं कि थोड़ी-बहुत बिक्री हो रही है, लेकिन पिछली सालों में जिस तरह से बिक्री होती थी, वैसा कुछ भी नहीं हो रहा है. यदि हमारा नगाड़ा नहीं बिका तो हम उसे नेताओं के पास रख देंगे. इतना सामान लेकर आए हैं, हम कहाँ जाएंगे, हमारा धंधा ही यही है.

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