चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर (Post Graduate Institute of Medical Education and Research) मेडिकल संस्थान में स्किन बैंक का उद्घाटन किया गया है. जहां 50% से भी ज्यादा जल चुके मरीजों को नया जीवनदान मिलेगा. डॉक्टारों के मुताबिक डोनर के द्वारा दान की गई स्किन को करीब पांच साल तक संरक्षित कर सकते हैं. इसका उपयोग उन रोगियों के लिए करते हैं जो 30-50% से अधिक जले हुए हैं.

स्किन बैंक के उद्घाटन के मौके पर पीजीआईएमईआर के स्किन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अतुल पाराशर ने कहा, “यह उत्तरी क्षेत्र का पहला त्वचा बैंक है. 15 जुलाई को एम्स दिल्ली में एक त्वचा बैंक खोला गया है. जिन लोगों ने त्वचा दान के लिए सहमति दी है, हमें उनकी मृत्यु के छह घंटे के भीतर उनकी त्वचा को इकट्ठा करना होगा और फिर इसे प्रोसेस्ड करना होगा.

डॉ अतुल पराशर के मुताबिक स्किन बैंक एक processing इकाई है. यदि त्वचा संक्रमण से मुक्त हो जाती है फिर हम इसे preserve करते हैं. हम इसे करीब पांच साल तक संरक्षित कर सकते हैं. इसका उपयोग उन रोगियों के लिए करते हैं जो 30-50% से अधिक जले हुए हैं. बता दें कि ये संस्थान भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है. यह सरकारी हॉस्पिटल है.

हर साल आते हैं 500 जले हुए मरीज

स्किन बैंक में पदस्थ डॉक्टरों के मुताबिक, 40 फीसदी से ज्यादा जलने पर ही मरीज को किसी दूसरे से त्वचा लेनी होती है. एक बार जब त्वचा ग्राफ्ट लग जाता है, तो रोगी के घाव 2 से 3 सप्ताह के भीतर ठीक होने लगते हैं. रिकवरी देखी जाती है, और यदि रोगी को त्वचा ग्राफ्टिंग की आवश्यकता होती है, तो पुनः ग्राफ्टिंग की जाती है.

स्किन ग्राफ्टिंग का मतलब यह नहीं है कि मरीज को स्थायी रूप से स्किन ग्राफ्ट करना होगा। यह एक अस्थायी प्रक्रिया है, ताकि उसे तब तक सहारा दिया जा सके जब तक कि उसके घाव जल्दी ठीक न हो जाएं और उसकी अपनी त्वचा वापस न आ जाए. पीजीआई में हर साल 500 बर्न मरीज पंजीकृत होते हैं. त्वचा लेने के बाद उसकी स्क्रीनिंग और परीक्षण किया जाएगा. त्वचा को कम तापमान पर 5 साल तक संग्रहीत किया जा सकता है.

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