राजधानी में कानून-व्यवस्था को बनाये रखने वाली दिल्ली पुलिस एक मामले को लेकर खुद ही कटघडे में खड़ी नजर आ रही है. द्वारका डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एक मामले में दिल्ली पुलिस आयुक्त को उत्तम नगर थाना के थानाध्यक्ष समेत तीनों इंस्पेक्टर व पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। यह आदेश एक छात्र की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसे एक कथित लूट के मामले में गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था।
सीसीटीवी फुटेज बना बड़ा सुबूत
इस मामले में छह जुलाई को हुई एक वारदात की प्राथमिकी आठ जुलाई को दर्ज की गई थी, लेकिन पुलिस ने इससे पहले ही सात जुलाई की रात को छात्र को गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी कानूनी प्रक्रिया की खुली अनदेखी मानी गई। आरोपित छात्र के परिजनों द्वारा पेश किया गया घर का सीसीटीवी फुटेज मामले में बड़ा सुबूत बनकर सामने आया
इसमें स्पष्ट देखा गया कि पुलिस टीम बिना वारंट और उचित कानूनी प्रक्रिया के घर में दाखिल हुई और छात्र को उठाकर ले गई। कोर्ट ने इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना और छात्र को जमानत पर रिहा करते हुए पुलिस आयुक्त को पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के आदेश दे दिए।
संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 21 का सरासर उल्लंघन
इस मामले में पीड़ित पक्ष के वकील सुमित चौहान का कहना है कि यह अपने आप में बहुत बड़ी लापरवाही है कि जिस मामले में युवक को नौ जुलाई की रात को गिरफ्तार दिखाया गया जबकि सात जुलाई को ही पुलिस ने उसे अवैध रूप से घर से उठा लिया। यह संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 21 का सरासर उल्लंघन है।
वर्ष 2019 में उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को एक स्टेंडिंग गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें गिरफ्तारी के लिए कुछ नियम निर्धारित थे। कोर्ट ने इस मामले में उत्तम नगर थाना के कृत्य को इस गाइडलाइन का उल्लंघन माना।
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