रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी कृषि कानूनों में परिवर्तन को संसद में पारित किए जाने और श्रम कानून में परिवर्तन को लेकर 17 से 22 सितंबर तक देशव्यापी विरोध प्रदर्शन कर रही है। लॉक डाउन की वजह से कार्यकर्ताओं ने अपने घर के बाहर तख्ती लेकर अपना विरोध जताया।

  1. आयकर दायरे के बाहर के सभी परिवारों को अगले छह माह तक 7500 रुपये प्रति माह नगद आर्थिक मदद दिए जाने।
  2. सभी जरूरतमंद लोगों को अगले छह माह तक प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो अनाज मुफ्त दिये जाने।
  3. मनरेगा का विस्तार करो और बढ़ी हुई मजदूरी दर पर साल में 200 दिनों का काम सुनिश्चित कर शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू कर सभी बेरोजगारों के लिए बेरोजगारी भत्ते की घोषणा करने।
  4. भारतीय संविधान की रक्षा के साथ ही देश के सभी नागरिकों के लिए स्वाधीनता, समानता और भाईचारे जैसी मौलिक अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित कर सांप्रदायिक विभाजनकारी नीतियों पर तत्काल अंकुश की मांग को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपने घरों के समक्ष शारीरिक दूरी व कोविड नियमों का पालन करते हुए प्रदर्शन किया ।

माकपा के राज्य सचिव मण्डल सदस्य धर्मराज महापात्र व जिला सचिव प्रदीप गभने ने कहा कि माकपा के रायपुर जिले के साथी सुबह 10 बजे से 10.15 बजे तक अपने घरों, बालकनियो में अपने परिजनों व साथियों के साथ शहर के 24 से अधिक बस्तियों में लोगों ने तख्ती अपने घरों व बस्तियों में प्रदर्शन किए।

इन प्रदर्शनों का नेतृत्व पार्टी के राज्य सचिव मंडल सदस्य, धर्मराज महापात्र व जिला सचिव प्रदीप गभने, एस सी भट्टाचार्य, शीतल पटेल, राजेश अवस्थी, रत्न गोंडाने, मनोज देवांगन आदि साथियों ने किया ।

माकपा नेताओ ने कहा कि समूची स्वास्थ प्रणाली के निजीकरण की तबाही आज जनता भोग रही है, हालत यह है कि लॉक डाऊन से पहले की तुलना में आज संक्रमित लोगों की संख्या कई गुना और संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है और पूरी अर्थव्यवस्था ठप्प हो चुकी है। इस असफलता के बाद फिर जिस तरह मोदी सरकार ने पूरा जिम्मा राज्यों पर छोड़ दिया है, उससे स्पष्ट है कि उसने आम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को त्यागकर उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने में मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त और जनविरोधी नीतियों की बहुत बड़ी भूमिका है। नतीजन उससे न तो देश में कोरोना महामारी पर काबू पाया जा सका है और न ही आम जनता को राहत देने के कोई कदम उठाये गए हैं। आम जनता बेकारी, भुखमरी और कंगाली की कगार पर पहुंच चुकी है। असंगठित क्षेत्र के 15 करोड़ लोगों की आजीविका खत्म हो गई है और खेती-किसानी चौपट हो गई है।

उससे निकलने का एकमात्र रास्ता यह है कि आम जनता के हाथों में नगद राशि पहुंचाई जाए तथा उसके स्वास्थ्य और भोजन की आवश्यकताएं पूरी की जाए, ताकि उसकी क्रय शक्ति में वृद्धि हो और बाजार में मांग पैदा हो। उसे राहत के रूप में “कर्ज नहीं, कैश चाहिए”, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संकट आपूर्ति का नहीं, मांग का है।

इसीलिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने आयकर के दायरे के बाहर के सभी परिवारों को आगामी छह माह तक 7500 रुपये मासिक नगद दिए जाने और हर व्यक्ति को 10 किलो अनाज हर माह मुफ्त दिए जाने; मनरेगा मजदूरों को 200 दिन काम उपलब्ध कराने तथा इस योजना का विस्तार शहरी गरीबों के लिए भी किये जाने; मनरेगा में मजदूरी दर न्यूनतम वेतन के बराबर दिए जाने तथा सभी बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने; राष्ट्रीय संपत्ति की लूट बंद करने, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक लगाने और श्रम कानूनों और कृषि कानूनों को तोड़-मरोड़कर उन्हें खत्म करने की साजिश पर रोक लगाने की मांग की है।