हिमालयी राज्यों में सेब की कई प्रजातियों का अस्तित्व संकट में है. इसमें कई प्रजातियां 100 साल पुरानी हैं. आने वाले समय में इसमें कुछ प्रजातियां पूरी तरह खत्म भी हो सकती हैं. अल्मोड़ा के जीबी पंत हिमालयी राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान के अधीन राष्ट्रीय हिमालयी मिशन के तहत चल रहे शोध में ये बात सामने आई है.
सेब की इन प्रजातियों पर है संकट
सेब की सौ साल पुरानी रॉयल डिलिशियस समेत सेब की कई प्रजातियां संकट हैं. इसमें मिच गाला, गाला रेडलम, गाला मस्ट, रेड गोल्ड, रेड वेलॉक्स, फ्यूजी जैन, रेड फ्यूजी, सिल्वर स्पर, ऑरीगॉन, गोल्डन डिलिशियस, रायंडर, सुपर चीफ, रिचा रेड आदि प्रमुख हैं.
प्रजातियों के साथ नष्ट होंगी खूबियां
रॉयल डिलिशियस सेब में डायट्री फाइबर, फेनोलिक यौगिक और अन्य पोषक तत्व सेब की अन्य किस्मों से कहीं ज्यादा होते हैं. मिच गाला, गाला रेडलम, गाला मस्ट सेब की ऐसी प्रजातियां हैं जिनमें सबसे अधिक एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं.
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर चल रहा काम
सेबों पर संकट देख वैज्ञानिकों ने सेबों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर भी काम शुरू कर दिया है. विभिन्न ऊंचाइयों पर सेब की वृद्धि और गुणवत्ता पर अध्ययन किया जा रहा है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कैसे कम किया जाए, इस पर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं.
पहले चरण में जम्मू कश्मीर में अध्ययन किया जा रहा है. इसकी जिम्मेदारी शेर-ए-कश्मीर विश्वविद्यालय को दी गई है. शोध दल का नेतृत्व कर रहे डॉ.फारुख अहमद लोन के अनुसार, तीन दशक पहले इस संकट की शुरुआत हुई. कश्मीर घाटी में ही 100 से अधिक सेब प्रजातियां पाई जाती हैं. अन्य राज्यों में हालात और बदतर हैं. सेब पर आए संकट की प्रमुख वजह जलवायु परिवर्तन, बारिश-बर्फबारी में हो रहे बदलाव के अलावा ग्रीन हाउस गैसें भी हैं.
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