जल-जंगल-जमीन और खनिज संसाधनों से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ आदिम लोक संस्कृति-परंपराओं और त्योहारों का भी गढ़ है. छत्तीसगढ़ के हर हिस्से में लोक संस्कृति की छटा बिखरी हुई है. लेकिन बदलते परिवेश में सरकारी-राजनीतिक उपेक्षा के चलते प्रदेश की लोक कलाओं और संस्कृतियों को भुला भी दिया गया था. एक तरह से छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार, कला-संस्कृति सब किनारे लगा दिए गए थे. सरकार की ओर से महत्व नहीं मिलने के चलते महतारी अस्मिता कमजोर पड़ रही थी. लोग अपनी भाषा-संस्कृति, तीज-त्योहारों को लेकर हीन भावना से ग्रसित हो रहे थे. लोक संस्कृतियों को गांवों की संस्कृति और देहातियों की संस्कृति के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार आने के बाद अलग ही परिवर्तन दिखा. यह परिवर्तन है सांस्कृतिक पुनर्उत्थान का.

राज्य में सांस्कृतिक पुनर्उत्थान लगातार जारी है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य की ग्रामीण संस्कृतियों, तीज-त्योहारों, रीति-रिवाज-परंपराओं को जब से मुख्यमंत्री निवास में मनाना शुरू किया है प्रदेश भर में इसे लेकर हर्षव्यापी माहौल बन गया. लोग जिस कला-संस्कृति से खुद को अलग करते जा रहे थे, वापस उससे जुड़ने लगे. गैर छत्तीसगढ़ी लोग भी छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहारों को मनाने बढ़-चढ़कर आगे आने लगे. सात समुंदर पार विदेशों तक छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक अब हर तीज-त्योहारों में देखी जा सकती है.

छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक पुनर्उत्थान का आरंभ छत्तीसगढ़ के लोक त्योहारों में सार्वजनिक अवकाश और मुख्यमंत्री निवास में भव्य आयोजन के साथ शुरू हुआ और फिर यह प्रदेशव्यापी महोत्सव में बदल गया. आज छत्तीसगढ़ की पहली तिहार हरेली से लेकर, तीजा-पोरा, देवारी और गोबरधन पूजा तक का आयोजन भव्यता के साथ न सिर्फ मुख्यमंत्री निवास मे हो रहा है, बल्कि प्रदेश भर में लोक त्योहारों की भव्यता देखी जा सकती है.

हरेली के त्योहारों को तो छत्तीसगढ़ सरकार ने लोकल से ग्लोबल बना दिया है. हरेली जिसे गेड़ी तिहार भी कहते हैं आज उसकी गूँज विदेशों तक है. विदेश में लोग अब गेड़ी पर चढ़कर जोहार छत्तीसगढ़ कह रहे हैं, गाड़ा-गाड़ा बधाई दे रहे हैं.

सावन का महीना हरियाली का महीना होता है. और सावन के अमावस में ही ‘हरेली’ का पर्व मनाया जाता. हरेली का पर्व वैसे तो मुख्य रूप से किसानों का पर्व है, लेकिन छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल अब इसे पूरी दुनिया का त्योहार बनाने में लग गए हैं. गांवों की लोक संस्कृतियों, परंपराओं को पुनर्जीवित कर, उन्हें संरक्षित कर आगे लाने में जुट गए हैं. इसका व्यापक असर आज समाज के हर वर्ग में एक बदलाव के साथ दिख रहा है. छत्तीसगढ़ के फिल्मकार, लोक कलाकार, लेखक, ग्रामीण किसान हरेली में छत्तीसगढ़ी अस्मिता को जागते और लोगों में जिंदा होते स्वाभिमान को देख रहे हैं. बीते साढ़े तीन सालों में सार्वजनिक अवकाश के साथ हरेली उत्सव-महोत्सव में बदल गया.

सच में कुछ साल पहले तक यही लगता रहा कि क्या छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति, तीज-त्योहार नंदा याने खत्म हो जाएंगे क्या ? क्या राज्य के लोक-पर्वों को हम भूल जाएंगे ? क्योंकि छत्तीसगढ़ की पहली तिहार ‘हरेली’ को लेकर भी गांव में उत्साह कम दिखने लगा था, शहर में यह त्योहार दिखता ही नहीं था. लेकिन राज्य में भूपेश बघेल की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार बनने के बाद एक बड़ा बदलाव दिखा. विशेषकर भाषा-संस्कृति, तीज-त्योहारों को लेकर. इसी बदलाव का परिणाम है कि हरेली तिहार में अब सार्वजनिक अवकाश है. याने हरेली मनाने के लिए सभी को राज्य में एक दिन की सरकारी छुट्टी. ताकि इस तिहार में गांव के किसान ही नहीं राज्य के हर वर्ग लोग भागीदार बन सकें. इसका असर भी आज देखने को मिल रहा है.

….अब मुझे लगता है कि कुछ भी नहीं नंदाने वाला- मीर अली मीर

अँचल के प्रसिद्ध कवि मीर अली मीर कहते हैं कि उन्होंने जो लिखा था- नंदा जाही का रे, नंदा जाही का रे, नंदा जाही का..कमरा अउ खुमरी अरे तुतारी…त..त..छू… मुझे यही लगता था कि समय के साथ कहीं छत्तीसगढ़ तीज-त्योहार, संस्कृति-पंरपरा, छोटी-छोटी निशानियां, खान-पान खत्म तो नहीं हो जाएंगे ? लेकिन भूपेश सरकार के आने के बाद से मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि कुछ भी नहीं नंदाने वाला. कुछ भी नहीं खत्म होने वाला. न ठेठरी-खुरमी, न कमरा-खुमरी, न तीजा-पोरा, न हरेली, न गेड़ी.

लोकल से ग्लोबल की ओर बढ़ चला हरेली- राहुल सिंह

छत्तीसगढ़ी संस्कृति के विशेषज्ञ और पुरातत्ववेत्ता राहुल सिंह जी कहते हैं कि हरेली का पर्व अब किसान वर्ग तक सीमित नहीं है. पिछले कुछ सालों मे यह त्योहार लोकल से ग्लोबल की ओर बढ़ चला है. सरकारी छुट्टी के साथ ही जिस तरह से हरेली में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा मिल रहा उससे लोक संस्कृति-परंपराओं को एक अलग ही मुकाम मिल रहा है.

लोक पर्व का पर्व का मान बढ़ा- डॉ. अजय चंद्राकर

दुर्गा महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर कहते हैं कि हरेली का अपना अलग ही महत्व छत्तीसगढ़ में रहा है. लेकिन बीते साढ़े तीन वर्षों में जब से सरकार के मुखिया ने सीएम हाउस इसे मनाना शुरू किया, लोक पर्व का दायरा काफी बड़ा हो गया है. अब तो शहरों में हरेली का उत्सव गांवों की तरह ही दिख रहा है. निश्चित यह बदलाव छत्तीसगढ़ के लिए एक सुखद संकेत है.

ऐसा वातावरण पहले कभी नहीं दिखा था- संजीव तिवारी

वास्तव में छत्तीसगढ़ में लोक पर्वों को लेकर जो महौल बीते तीन सालों में बना है, वैसा कभी नहीं दिखा था. कहते हैं जब शीर्ष पर बैठा व्यक्ति कुछ अच्छा करता है तो उसका असर समाज के हर हिस्से में, हर वर्ग पर दिखता. आज हरेली पर्व को लेकर यही कहा जा सकता है.

बीते कुछ सालों में बड़ा बदलाव दिखा है- पद्मश्री अनुज शर्मा

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सुपर स्टार पद्मश्री अनुज शर्मा भी छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रहे बदलाव को व्यापक परिवर्तन के रूप में देखते हैं. वे कहते हैं कि हरेली तो छत्तीसगढ़ में पहले से मनाया जाते रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह से लोक पर्व हरेली का महत्व बढ़ा है, उससे छत्तीसगढ़ी संस्कृति की छटा वैश्विक स्तर पर बिखर रही है. हर वर्ग का जुड़ाव आज लोक-पर्वों में दिख रहा है.

गेड़ी की पहचान अब कुछ और- राधेश्याम विश्वकर्मा

खेती-किसानी के साथ-साथ पारंपरिक रूप से लोहारी का काम करने वाले दुर्ग जिले के उतई निवासी राधेश्याम विश्वकर्मा बीते 50 सालों से गेड़ी बनाते आ रहे हैं. लेकिन बीते साढ़े तीन सालों में इनके पास गेड़ी बनवाने वालों की डिमांड बढ़ गई है. राधेश्याम भी मानते हैं कि भूपेश सरकार आने के बाद हरेली तिहार का महत्व काफी बढ़ गया है.

उम्मीद है कि हरेली की यह हरियर छटा छत्तीसगढ़ से बाहर निकलकर पूरी दुनिया में बिखरेगी और लोग कहेंगे….रच-रच, मच-मच गेड़ी मचईया नइ नंदावय ग.