संजय मानिकपुरी, सारंगढ़-बिलाईगढ़. जिले में एक ऐसा गांव भी है, जहां पिछले कई दशकों से ग्रामीण ना तो होलिका दहन करते हैं और न ही रंग गुलाल खेलते हैं. त्यौहार में यहां के लोगों का दिनचर्या सामान्य दिनों की तरह होता है. ग्रामीण त्यौहार के दिन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर परिवार और गांव की सुख-शांति, समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं.
बता दें कि, सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की बरमकेला ब्लॉक में एक गांव ऐसा है, जहां कई वर्षों से ना तो रंगों और खुशियों का ये त्यौहार मनाया जाता है और ना ही होलिका दहन किया जाता है. ये बात सुनने में भले ही अटपटी लगें, लेकिन ये सच है. गांव के पुराने लोगों की मानें तो यहां ऐसी मान्यता है कि, वर्षों पहले होलिका दहन के दौरान गांव के एक व्यक्ति को शेर उठाकर ले गया था और होलिका दहन से क्षेत्र में फसल नहीं होती. गांव के लोग ऐसा करते हैं तो उनके गांव में विराजमान देवी नाराज हो जाती हैं. माता किसी से नाराज न हों और गांव के सभी लोगों पर उनकी कृपा बनी रहे, इसलिए ग्रामीण पिछले कई सालों से यहां पर होली नहीं जलाते. इसी को परंपरा मानते हुए पूरा गांव इसका संजीदगी से पालन करता है.
जानकारी के अनुसार, जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर स्थित बरमकेला ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले खम्हरिया और केरमेली गांव के 250 परिवार के लोग बीते कई सालों से न तो होलिका दहन करते हैं और न ही रंगों का पर्व मनाते हैं. गांव के बुजुर्गों का कहना है कि, जब से वो पैदा हुए हैं तब से उन्होंने गांव में कभी भी होलिका जलते नहीं देखी और न ही किसी को होली पर्व मनाते देखा. बड़े बुजुर्गों का कहना है कि, एक बार कभी परंपरा को तोड़कर होली जलाने का प्रयास किया भी गया था, जिसके चलते पूरे गांव में उस वर्ष फसल नहीं हुई और होली दहन के दूसरे दिन एक युवा की असमय मौत हो गई थी. जिसके बाद लोगों को समझ आया कि, गांव की देवी नाराज हो गई हैं. लोगों ने जाकर माता के दर पर प्रार्थना की और आगे से ऐसा ना करने का संकल्प लिया. तब से लेकर अब तक लोग अपने संकल्प का पालन करते हुए होली का पर्व नहीं मनाते.
पूर्वजों के द्वारा लिए गए संकल्प को वर्षों से गांव के बच्चे, युवा और बुजुर्ग आज भी पालन कर रहे हैं. गांव के सभी इस दिन सामान्य दिन की तरह गांव की देवी की पूजा-अर्चना कर क्षेत्र की सुख समृद्धि की कामना करते हैं.
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