आज डॉटर्स-डे है. इस दिन को मैं अब कभी नहीं भूल पाऊंगा. क्योंकि आज मैंने अपनी बेटी को जीवनभर के लिए खो दिया. दुख तो बहुत है लेकिन जो लिखा है उसे कोई बदल नहीं सकता. मेरी बेटी कनिष्का सिंह जिसे प्यार से हम खुशी कहते थे. आज सुबह पौने चार बजे अपोलो में उसने अंतिम सांस ली. पिछले पांच साल से वो किडनी की बीमारी से लड़ रही थी. मैंने अपनी किडनी उसे ट्रांसप्लांट की ताकि उसका जीवन बचा पाऊं, लेकिन भगवान ऐसा नहीं चाहता था. उसे नहीं बचा पाने का दुख है. मेरी खुशी तकलीफ और दर्द सहन करती-रहती थी लेकिन रात में मुझे परेशान इसलिए नहीं करती थी कि पापा अभी ड्यूटी से आए हैं. थके होंगे, उन्हें अपना दर्द बताऊंगी तो वो सो नहीं पाएंगे. रातभर असहनीय दर्द को सहन कर लेती थी लेकिन मुझे जगाती नहीं थी.
वर्ष 2016 फरवरी महीने की बात है, जब मेरी बेटी की उम्र 13 वर्ष की थी. तब उसे अचानक सांस लेने में तकलीफ हुई. पैरों में सूजन, चक्कर आना, थकावट की पीड़ा हुई तो मैं उसे लेकर अपोलो हॉस्पिटल गया. यहां डॉक्टरों ने कई तरह की जांच कराई इसके बाद कहा कि बच्ची की किडनी में समस्या है. जितनी जल्दी किडनी बदल जाएगी, उतना अच्छा होगा. अपोलो में चार दिन इलाज चला, वेंटिलेटर पर बच्ची रही फिर आराम मिला तो हम वापस घर आ गए. इसके बाद मैं बच्ची को लेकर सीएमसी वेल्लूर गया. वहां के डॉक्टरों को भी दिखाया. उन्होंने भी यही समस्या बताई. उन्होंने कहा कि बच्ची की किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा.
मैं रेलवे कर्मचारी हूं इसलिए फिर मैं रेलवे हॉस्पिटल गया तो वहां के डॉक्टरों ने जसलोक हॉस्पिटल मुंबई में इलाज कराने के लिए लिखकर दिया. नवंबर 2016 में हम मुंबई के जसलोक गए. वहां सभी जांचें हुई और किडनी देने की बात कही. मैंने कहा मैं फादर हूं तो मेरी किडनी चेक कर लीजिए मैच करती है तो मैं दे दूंगा. भगवान की कृपा से मेरी किडनी मैच कर गई. लिखा पढ़ी के बाद 26 दिसंबर 2016 को मेरी किडनी बच्ची को ट्रांसप्लांट की गई. मैं एक हफ्ते तक भर्ती रहा और बच्ची 15 दिन भर्ती रही. इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया. खुशी भी स्वस्थ हो गई और वापस हम घर लौट आए.
दो साल तक सबकुछ ठीक रहा लेकिन वर्ष 2019 में फिर से बच्ची को प्रॉब्लम शुरू हुई. पैर फूलना, लंग्स में पानी भरना, सांस लेने में तकलीफ होना शुरू हो गई. हमने जसलोक के डॉक्टरों से संपर्क किया और अपोलो में इलाज शुरू कर दिया. तब से अपोलो में डायलिसिस और इलाज की दम पर खुशी की सांसें चल रही थी. डॉक्टरों ने उसे अभी तक दवाई, गोली की दम पर जिंदा रखा. 10 सितंबर से खुशी अपोलो में वेंटिलेटर पर थी और 26 सितंबर यानी आज डॉटर्स-डे के दिन सुबह पौने चार बजे वो मुझे छोड़कर चली गई. मेरी बेटी का शव अभी घर पर है. सोमवार को भारतीय नगर मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा. जैसा खुशी के पिता संजय सिंह ने दैनिक भास्कर के रिपोर्टर राजू शर्मा को बताया… साभार- दैनिक भास्कर