मुंबई. मुंबई बम धमाकों के आरोपी फारुक टकला की गिरफ्तारी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की बड़ी कामयाबी बताई जा रही है. बताया जा रहा है कि फारुक 1993 बम धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम का बेहद करीबी है. कुछ लोग उसे दाऊद का दायां हाथ तक मानते हैं. सीबीआई को फारुक से काफी अहम जानकारियां मिलने की उम्मीद है. टकला पर आपराधिक साजिश, मर्डर, हत्या की कोशिश, फिरौती और आतंकी साजिश जैसे कई मामले दर्ज हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीबीआई का मानना है कि फारुख टकला ही वह शख्स है, जिसने मुंबई में बम धमाके का पूरा प्लान बनाया था. फारुक की योजना के मुताबिक ही मुंबई जैसे शहर में एक साथ 12 जगहों पर धमाके किए गए. बताते हैं कि 1993 में बम धमाके के बाद जब फारुक भारत से दुबई भाग गया, तो भारत सरकार ने इंटरपोल से मदद मांगी थी.
दुबई में डी-कंपनी का संभालता था काम
इसके बाद इंटरपोल ने 1995 में फारुक टकला के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था. इस नोटिस के जारी होने के करीब 22 साल बाद टकला को सीबीआई अपनी गिरफ्त में ले पाई है. दुबई में रहते हुए फारुक लगातार डी-कंपनी के संपर्क में रहा. बताया जा रहा है कि वह दुबई में डी-कंपनी के काम संभालता था.
दाऊद ने जाहिर की थी सरेंडर की इच्छा
इस मामले में 27 दूसरे आरोपी भी हैं. पिछले साल सितंबर महीने में विशेष टाडा अदालत ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई थी जबकि अबू सलेम और एक दूसरे आरोपी को उम्रकैद की सजा हुई थी. जबकि एक अन्य आरोपी को 10 साल की सजा हुई थी. वहीं पिछले दिनों दाऊद इब्राहिम के वकील ने दाऊद के हवाले से उसके सरेंडर करने की इच्छा जाहिर की थी. दाऊद के वकील ने अपने बयान में कहा था कि दाऊद भारत आना चाहता है, लेकिन इसके पीछे उसने मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में ही रखे जाने की शर्त रखी थी. मुंबई बम धमाके से जुड़े केस की सुनवाई मुंबई की टाडा अदालत में चल रही है. इस मामले की सुनवाई 1995 में शुरू हुई थी. मामले की चार्जशीट 10,000 पेज से ज्यादा पेज की दायर की गई थी.
सिलसिलेवार धमाकों में मारे गए थे 257 लोग
बता दें कि 24 साल पहले 12 मार्च 1993 को मुंबई 12 सिलसिलेवार धमाकों से दहल उठी थी. इसमें 257 लोग मारे गए थे, जबकि 713 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. सीबीआई के मुताबिक, मुंबई धमाके 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए किए गए थे. सीबीआई ने कोर्ट को यह भी बताया कि ये धमाके दुनिया का पहला ऐसा आतंकी हमला था, जहां दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इतने बड़े पैमाने पर आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया.