CG News : कवर्धा. भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में उपलब्धियों को आमजन, विशेषकर विद्यार्थियों से जोड़ने के उद्देश्य से नेशनल स्पेस डे 2025 के अवसर पर आज शासकीय पी.जी. कॉलेज, कवर्धा में एक विशेष विज्ञान कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री विजय शर्मा ने माता सरस्वती की पूजा अर्चना के साथ किया. विद्यार्थियों ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ की संस्कृति और अस्मिता को समर्पित राजकीय गीत “अरपा पैरी के धार” की भावपूर्ण प्रस्तुति भी दी.

कार्यकम में विशिष्ट अथिति के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद से वैज्ञानिकगण डॉ. आनंद अरूर, जुगल किशोर मणि, अरुण एस. सूर्यवंशी, पी. काश्वेर, डॉ. अमित दुबे, डॉ. अखिलेश त्रिपाठी विशेष रूप में आमंत्रित थे. कार्यकम में जिला पंचायत अध्यक्ष ईश्वरी साहू, उपाध्यक्ष कैलाश चन्द्रवंशी, नपा अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश चन्द्रवंशी, एवं पीजी कालेज के प्रभारी प्रचार्य डॉ. ऋचा मिश्रा , रिंकश वैष्णव सहित अन्य जनप्रतिनिधि उपस्थित थे.

यह आयोजन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, एवं छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के संयुक्त तत्वावधान में, साइंस क्लब, पी.जी. कॉलेज कवर्धा द्वारा आयोजित किया गया. कॉलेज परिसर के इंडोर ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों के लिए स्पेस क्विज, पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता, ऑनलाइन डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शन, सीधे संवाद सत्र तथा इसरो की चलित प्रदर्शनी “स्पेस ऑन व्हील्स” को एक दिन के लिए प्रदर्शित किया गया.

कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने विद्यार्थियों से संवाद करते हुए कहा कि विज्ञान का सही आशय केवल जिज्ञासा को शांत करना नहीं है, बल्कि खोज, अनुसंधान और जिज्ञासा को और अधिक प्रोत्साहित करना है. उन्होंने कहा कि भारतीय समाज और मानव सभ्यता में विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और जीवन शैली में गहराई से रचा-बसा है. हमारी दैनिक दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन और पूजा-पद्धति में विज्ञान की गूंज स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.

उन्होंने विद्यार्थियों को एक उदाहरण देते हुए बताया कि बीते समय में गांव की माताएँ और महिलाएँ अधिक शिक्षित नहीं होती थीं, फिर भी वे अपने रसोई घर को पूर्णतः वैज्ञानिक ढंग से संचालित करती थीं. भारत में रसोई केवल खाना पकाने की जगह नहीं, बल्कि एक शोधशाला की तरह होती थी, जहाँ स्वच्छता, पोषण और संतुलन को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था.

उपमुख्यमंत्री शर्मा ने आगे कहा कि हमारे यहाँ यह स्वीकार्य हो सकता है कि खाने के लिए डायनिंग टेबल और विशेष बर्तन न हों, लेकिन स्वच्छता से कोई समझौता नहीं होता. यह सोच अपने-आप में वैज्ञानिक दृष्टिकोण है. भारत में भोजन में हल्दी, तुलसी, नीम, काली मिर्च जैसी औषधीय वनस्पतियों का प्रयोग सदियों से होता आया है, जो आयुर्वेद और विज्ञान का अद्भुत उदाहरण है.
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि विदेशों में भले ही भोजन की प्रस्तुति और बर्तनों पर अधिक ध्यान दिया जाता हो, लेकिन वहाँ स्वच्छता और पोषण पर वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं दिखता, जो भारतीय परंपरा में सहज रूप से विद्यमान है.

शर्मा ने कहा कि आज हमें आवश्यकता है अपनी परंपरागत वैज्ञानिक विरासत को समझने, उसमें नवाचार जोड़ने और आगे बढ़ाने की. यही सोच भारत को आत्मनिर्भर, नवाचारशील और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में ले जा सकती है.

उन्होंने बताया कि नेशनल स्पेस डे भारत में हर वर्ष 23 अगस्त को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत वर्ष 2023 में चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता के बाद हुई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. 23 अगस्त 2023 को भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला विश्व का पहला मिशन बना. उन्होंने कहा कि “स्पेस डे केवल उत्सव नहीं, बल्कि युवाओं में विज्ञान, शोध और तकनीक के प्रति रुचि जगाने का संकल्प है.

कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित इसरो एवं सीकॉस्ट से आए वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने विद्यार्थियों से संवाद कर उन्हें विज्ञान और अंतरिक्ष मिशनों की बारीकियों से अवगत कराया.

डॉ. आनंद अरूर, जुगल किशोर मणि, अरुण एस. सूर्यवंशी, पी. काश्वेर, डॉ. अमित दुबे और डॉ. अखिलेश त्रिपाठी ने चंद्रयान, मंगलयान, गगनयान और अन्य मिशनों की वैज्ञानिक चुनौतियों एवं तकनीकों को सरल भाषा में समझाया. उन्होंने विद्यार्थियों के प्रश्नों का मार्गदर्शनपूर्ण उत्तर भी दिया.

इसरो द्वारा प्रदर्शित “स्पेस ऑन व्हील्स” नामक मोबाइल प्रदर्शनी वाहन इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा. यह वाहन अत्याधुनिक तकनीक से युक्त है, जिसमें थ्री डी डिस्प्ले, इंटरएक्टिव मॉडल्स, और वर्चुअल स्पेस अनुभव जैसी सुविधाएं हैं. विद्यार्थियों ने इसमें अंतरिक्ष अभियानों की झलकियों को नजदीक से देखा और अनुभव किया. यह प्रदर्शनी न केवल ज्ञानवर्धक रही बल्कि बच्चों में उत्सुकता और प्रेरणा का संचार करने वाली साबित हुई.

उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने इस वाहन का स्वयं अवलोकन किया और वैज्ञानिकों से तकनीकी जानकारी प्राप्त की. उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि “आपमें से ही कोई भविष्य में इसरो का वैज्ञानिक बन सकता है, बस सपने देखें, वैज्ञानिक सोच अपनाएं और लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे.

कार्यक्रम में आमंत्रित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एवं छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने विद्यार्थियों से सीधे संवाद किया और उन्हें भारतीय अंतरिक्ष मिशनों की जमीनी सच्चाइयों, वैज्ञानिक संघर्षों और उपलब्धियों की गहराई से जानकारी दी. वैज्ञानिकों ने बच्चों का मनोबल भी बढ़ाया

वैज्ञानिक डॉ. आनंद अरूर ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत अब तकनीक में आत्मनिर्भरता की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है. चंद्रयान-3 और गगनयान जैसे मिशन इस बात का प्रमाण हैं कि अब हम अनुसरण नहीं कर रहे, बल्कि नवाचार गढ़ रहे हैं.
“आपमें से ही कोई विद्यार्थी भविष्य में इसरो के मिशन डायरेक्टर के रूप में काम करेगा. आज आप जो प्रश्न पूछते हैं, वही कल आपको नई खोजों की ओर ले जाएंगे. इसलिए सोचिए, संकोच मत करिए, और कभी सपने देखना मत छोड़िए. वैज्ञानिक जुगल किशोर मणि ने विद्यार्थियों से बातचीत करते हुए कहा कि हर बच्चा जन्म से वैज्ञानिक होता है, क्योंकि वह प्रश्न पूछता है ‘यह क्यों?’ ‘कैसे?’ ‘कब?’. हमारी जिम्मेदारी है कि उस जिज्ञासा को दबने न दें.”

हमारा उद्देश्य सिर्फ रॉकेट उड़ाना नहीं, बल्कि सोच की ऊंचाई को भी ऊँचा उठाना है. भारत अब अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में पहचाना जा रहा है, और उस पहचान का अगला अध्याय आप सभी विद्यार्थियों के हाथों में है. 

अरुण एस. सूर्यवंशी ने कहा कि हमारे अंतरिक्ष मिशनों में सटीक गणना, टीमवर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही सफलता की कुंजी हैं. अंतरिक्ष विज्ञान केवल विज्ञान नहीं, यह अनुशासन, धैर्य और समर्पण की भी पाठशाला है.

डॉ. अमित दुबे ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि चंद्रयान और मंगलयान केवल रॉकेट नहीं हैं, वे भारत के स्वाभिमान, आत्मविश्वास और वैज्ञानिक शक्ति की प्रतीक हैं. जब आप किसी समस्या को हल करने की ठान लेते हैं, तब आप भी वैज्ञानिक ही होते हैं. अंतरिक्ष में काम करने से पहले, ज़मीन पर सोचने की आदत डालिए. वैज्ञानिक अखिलेश त्रिपाठी, पी. काश्वेर ने भी अपने उद्बोधन प्रस्तुत किया.