18वीं शताब्दी में भारत में अंग्रेजों का आगमन हुआ था. बतौर ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में कदम में रखने वाले अँग्रेज व्यापारी से धीर-धीरे सत्ताधीश बनते चले. वे धीरे-धीरे अपनी हुकूमत का विस्तार बंगाल से लेकर समूचे भारत करने लगे थे. 19 शताब्दी तक आते-आते अँग्रेजी हुकूमत की पहुँच तब के महाकौशल और अब के छत्तीसगढ़ तक हो गई थी. यहाँ तक अंग्रेजी फौज बस्तर के बीहड़ और अबूझमाड़ तक घुस गई थी.

अंग्रेजों ने जिस समय छत्तीसगढ़ में अपना साम्रराज्य स्थापित किया, उस दौरान छत्तीसगढ़ में मराठो की सत्ता थी. मराठा हुकूमत के साथ मिलकर अँग्रेजों ने बस्तर के आदिवासियों पर जुल्म-अत्याचार शुरू कर दिए. धीरे-धीरे मराठा सत्ता समाप्त हुई और छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से अंग्रेजों का कब्जा हो गया. हालाँकि छत्तीसगढ़ के वनांचल इलाकों में गोड़ राजवंशों का प्रभाव तब तक कायम था. इस दौर में बस्तर के अंदर हल्बा आदिवासी विद्रोह का आगाज कर चुका था. 1779 में डोंगर के राजा अजमेर सिंह की षड्यंत्र के साथ हत्या हो गई. इस घटना के बाद हल्बा संगठन कुछ कमजोर पड़ा और अँग्रेजी सत्ता आदिवासियों से उनके अधिकार छीनते लगी.

आदिवासियों पर सन् 1824 के आते-आते तक अत्याचार काफी बढ़ गए थे. तभी अबूझमाडियों के बीच उनका नेतृत्वकर्ता के तौर पर उभरा गैंद सिंह. गैंद सिंह ने कुछ महीनों के अंदर ही आदिवासियों का एक विद्रोही संगठन तैयार कर लिया. संगठन तैयार होते ही गैंद सिंह ने अँग्रेजी सत्ता के खिलाफ बिगुल फूँक दिया. उन्होंने अंग्रेज मुक्त बस्तर का नारा दिया और यहीं से देश में स्वतंत्रता आंदोलन का पहला आगाज हुआ. लेकिन इतिहास में सन् 1857 की क्रांति को स्वतंत्रता संग्राम का आगाज माना जाता है.

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जहाँ विद्रोह हुआ वह परलकोट जमीदारी मुख्यालय था. इसके तहत आस-पास के 165 गाँव आते थे. परलकोट महाराष्ट्र की सीमा से लगा हुआ इलाका है. परलकोट अबूझमाड़ का क्षेत्र है. अबूझमाड़ एक ऐसा सघनवनों का इलाका है तब भी वहाँ के लोगों के लिए महफूज रहा और आज भी है. नदी, पर्वतों और घने वनों से घिरा हुआ इलाका गैंद सिंह के लिए सबसे सुरक्षित इलाका था. बंदूकधारी अँग्रेजी सैन्य ताकत से लड़ने के लिए गैंद सिंह यहीं से अपना संघर्ष जारी रखा. गैंद सिंह के नेतृत्व में तीर-कमानधारी आदिवासियों की अपनी एक पूरी फौज तैयार हो गई थी. उन्होंने अंग्रेजी सत्ता को सीधी चुनौती दे दी थी.

सन् 1825 में विद्रोह इतना बड़ चुका था, कि अँग्रेजी सत्ता को गैंद सिंह से बातचीत करने की जरूरत आन पड़ी, लेकिन गैंद सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने किसी भी सूरत में झुकने से इंकार कर दिया. अंग्रेजी सत्ता के अधिकारी एग्न्यू ने गैंद सिंह को गिरफ्तार करने की रणनीति बना ली. उन्होंने महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में बंदूकधारी सैनिक बुला लिए. 10 जनवरी 1825 में उन्होंने भारी सैन्य ताकत के बलबुते परलकोट को पूरी तरह से घेर लिया. गैंद सिंह गिरफ्तार कर लिए गए.

10 दिन बाद 20 जनवरी 1825 को परलकोट महल के सामने छत्तीसगढ़ के वीर सपूत गैंद सिंह को अंग्रेजी सत्ता ने फांसी दे दी. गैंद स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हो गए. अगर भारतीय इतिहास में परलकोट के विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम का पहला विद्रोह माना जाता तो गैंद सिंह भारत के प्रथम शहीद कहलाते.

ऐसे वीर सपूत को छत्तीसगढ़ और पूरा देश नमन करता है- भूपेश बघेल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले अमर शहीद गैंद सिंह को उनके शहादत दिवस 20 जनवरी पर नमन किया है. मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि शहीद गैंदसिंह ने अंग्रेजों के शोषण के विरूद्ध आवाज उठाई और बस्तर के आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया. बस्तर के अबूझमाड़ में क्रांति की मशाल जलाने वाले शहीद गैंदसिंह को उनकी पुण्यतिथि पर गर्व और सम्मान के साथ याद किया जाता है. ऐसे वीर सपूत को छत्तीसगढ़ और पूरा देश नमन करता है. उनका बलिदान युगों तक याद किया जाएगा.