
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला याचिकाकर्ता के झूठ को उजागर किया. इसके परिणामस्वरूप, न केवल उसे कड़ी फटकार मिली, बल्कि न्यायालय ने मानवीय आधार पर दी गई राहत भी वापस ले ली. महिला ने उच्च न्यायालय में अपने परिवार का उल्लेख करते हुए सरोजिनी नगर मार्केट में रेहड़ी-पटरी लगाने की अनुमति मांगी थी.
उच्च न्यायालय ने महिला की आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पिछले वर्ष नवंबर में उसे महत्वपूर्ण राहत प्रदान की थी. न्यायालय ने नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को आदेश दिया कि महिला को संबंधित स्थान पर दुकान लगाने की अनुमति दी जाए. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति रजनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने इस तथ्य के बावजूद कि महिला सरोजिनी नगर मार्केट में अवैध रूप से दुकान चला रही है, उसे चार नवंबर 2024 को राहत दी.
आधार कार्ड से खुली पोल
सुनवाई के दौरान पीठ के सामने महिला का एक बड़ा झूठ उजागर हुआ. महिला ने उच्च न्यायालय में यह दावा किया था कि वह 2008 से 2024 तक एनडीएमसी को तहबाजारी का भुगतान कर रही थी. जब उच्च न्यायालय ने महिला से आधार कार्ड पेश करने को कहा, तो पता चला कि महिला 2008 में चार साल से भी कम उम्र की थी. इस जानकारी को देखकर पीठ हैरान रह गई और पूछा कि एक चार साल की बच्ची तहबाजारी का भुगतान कैसे कर सकती है. पीठ ने कहा कि उनका विश्वास टूट गया है और इस झूठ के आधार पर महिला को दी गई राहत को तुरंत समाप्त कर दिया गया. इसके साथ ही महिला की पहले से लंबित याचिका को भी खारिज कर दिया गया.
नहीं बनेगी सर्वे का हिस्सा
उच्च न्यायालय की पीठ ने पूर्व की सुनवाई में एनडीएमसी को महिला के कार्य में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया था, साथ ही स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट 2014 के तहत स्थापित टाउन वेंडिंग कमेटी द्वारा किए जा रहे सर्वेक्षण में शामिल होने का भी आदेश दिया था. इससे महिला को सरोजिनी नगर मार्केट में भविष्य में स्थायी रूप से कार्य करने की अनुमति मिलती. हालांकि, अब उच्च न्यायालय ने इस मामले को खारिज कर दिया है.
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