दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अमेरिकी नागरिक पर जारी ‘लुकआउट सर्कुलर’ (LOC) पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह मामला जेंसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड से जुड़े कथित 2,385 करोड़ रुपये के कॉर्पोरेट घोटाले की जांच से संबंधित है। कोर्ट ने कंपनी के पूर्व इंडिपेंडेंट डायरेक्टर इंदरप्रीत सिंह वाधवा को विदेश यात्रा की अनुमति देते हुए अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर लगी रोक को आंशिक रूप से राहत दी है।
Gensol Engineering में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं और फंड डायवर्जन के आरोपों की जांच जारी है। इसी जांच के दौरान अमेरिकी नागरिक इंदरप्रीत सिंह वाधवा का नाम भी सामने आया था। वाधवा Blue-Smart Mobility Pvt. Ltd. के पूर्व इंडिपेंडेंट डायरेक्टर रह चुके हैं। कथित धोखाधड़ी का आंकड़ा लगभग 2,385 करोड़ रुपये तक पहुंचने के आरोपों के साथ वाधवा के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी किया गया था।
हालांकि, वाधवा ने अदालत में दावा किया कि वे खुद कंपनी में कॉरपोरेट गवर्नेंस से जुड़ी अनियमितताओं के सबसे पहले व्हिसलब्लोअर थे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने ही Registrar of Companies (RoC) के पास आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई थी और घोटाले का खुलासा करवाया। उनका तर्क था कि उन्हें मीटिंग के मिनट्स और वित्तीय रिकॉर्ड में मिली विसंगतियों को उठाने के बदले गलत तरीके से जांच के दायरे में ला दिया गया।
कोर्ट में हंगामा
वाधवा ने इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार दुबे और चिक्कू मुखोपाध्याय ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने अदालत के सामने यह स्पष्ट किया कि वाधवा का कंपनी के वित्तीय लेन-देन या खातों के संचालन से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था। साथ ही यह दलील भी रखी गई कि उनके खिलाफ LOC जारी करना मनमाना और असंगत कदम है, क्योंकि वे न तो फरार हैं और न ही जांच से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
वकीलों ने यह भी बताया कि वाधवा के विदेश में कुछ मेडिकल अपॉइंटमेंट्स और पारिवारिक दायित्व लंबित हैं, जिनके लिए उन्हें यात्रा की अनुमति जरूरी है। दूसरी ओर, केन्द्र सरकार और कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) की ओर से उपस्थित वकीलों ने LOC हटाए जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि जांच अभी प्रारंभिक लेकिन संवेदनशील चरण में है, ऐसे में विदेश यात्रा की अनुमति से प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद LOC को ‘अत्यधिक कठोर और अनुपातहीन’ करार देते हुए इसे अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया, हालांकि कुछ शर्तों के साथ।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की एकल-पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद स्पष्ट किया कि ‘रोकथाम संबंधी उपाय, किसी व्यक्ति के लिए सजा का रूप नहीं ले सकते।’ अदालत ने माना कि जांच जारी है, लेकिन इस आधार पर वाधवा की निजी स्वतंत्रता, पेशेवर ज़िम्मेदारियाँ और पारिवारिक जीवन को अनिश्चित काल तक ठप नहीं किया जा सकता, खासकर तब, जब उन्हें आरोपी घोषित भी नहीं किया गया है।
हाईकोर्ट ने इसलिए LOC को रिट पिटीशन की अवधि तक सस्पेंड कर दिया, लेकिन सख्त वित्तीय शर्तों के साथ। वाधवा को ₹25 करोड़ की सिक्योरिटी (फ़िक्स्ड डिपॉज़िट या बैंक गारंटी के रूप में), और ₹5 करोड़ की अतिरिक्त गारंटी जमा कराने का आदेश दिया गया। इसके अलावा, वाधवा को हर विदेश यात्रा से पहले विस्तृत यात्रा कार्यक्रम, संपर्क विवरण और रिटर्न डेट जांच एजेंसियों को उपलब्ध करानी होगी। कोर्ट ने कहा कि राज्य को जांच करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार व्यक्ति की अस्मिता और गतिशीलता के मूल अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता।
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