नई दिल्ली। 2020 के दिल्ली दंगों में बड़ी साजिश से जुड़े एक मामले में यहां की एक अदालत ने कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां को जमानत दे दी. इशरत जहां को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने जमानत दी थी, जिन्होंने पिछले महीने दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. उन्हें 26 फरवरी 2020 को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा गिरफ्तार किया गया था और उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, भारतीय दंड संहिता, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम और शस्त्र अधिनियम के तहत आरोप लगाया गया था. पिछली सुनवाई के दौरान इशरत जहां की ओर से अधिवक्ता प्रदीप तेवतिया और सरकार की ओर से विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद पेश हुए थे.

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इशरत जहां ने सबूत नहीं मिलने की कही बात

इशरत जहां के वकील ने पिछली सुनवाई में दलील दी थी कि वह एक वकील और एक युवा राजनीतिक व्यक्ति हैं. तेवतिया ने तर्क दिया कि उनके पास एक शानदार कौशल है. मैं एक ऐसे वार्ड से विजयी हुआ था, जहां मुसलमानों की संख्या कम थी. दोनों संप्रदायों ने उन्हें वोट दिया था. उस वार्ड से कोई मुसलमान भी नहीं जीता था. इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि वह एक लोकप्रिय महिला थीं, उन्होंने कहा कि उनके पास साजिश में शामिल होने के संबंध में ‘सबूत का एक भी कोटा’ नहीं है.

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इशरत जहां थी अन्य आरोपियों के संपर्क में

अभियोजन पक्ष के अनुसार, इशरत जहां अन्य आरोपियों के संपर्क में थी, जिनके साथ उनका कोई संबंध नहीं था और यह केवल दंगा करने की साजिश के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए था. पुलिस ने कहा था कि इशरत जहां 26 फरवरी को खुरेजी खास इलाके में विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का विरोध कर रही थी और पुलिस द्वारा उन्हें सड़क खाली करने के लिए कहने के बाद बड़ी भीड़ को रुकने के लिए ‘उकसाया’. पुलिस ने दावा किया कि उनके उकसाने पर भीड़ ने सुरक्षाकर्मियों पर पथराव किया. इससे पहले 2020 में एक जमानत याचिका में उन्होंने कोविड-19 के लक्षण बताए थे और परीक्षण किए जाने से पहले 7 दिनों के लिए होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी गई थी.