नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा को लाल किले से जोड़ने वाली करीब 5.6 किमी लंबी सुरंग का नवीनीकरण जल्द शुरू होने जा रहा है. इसके पूरा होते ही इसे आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा. हालांकि इस दौरान कोई खुदाई नहीं की जाएगी. वहीं लोगों को दिल्ली विधानसभा से जुड़े इतिहास को एक फिल्म के जरिए दिखाया भी जाएगा. सबकुछ तय योजना के तहत हुआ, तो अगले साल 15 अगस्त तक इसे पूरा कर लिया जाएगा.

दिल्ली विधानसभा में मिला अंग्रेजों के जमाने का सुरंग, इस काम के लिए होता था उपयोग…

दिल्ली विधानसभा में एक सुरंग है, जो विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी के ठीक सामने दूसरे छोर पर खुलती है. ये सुरंग तीन तरफ जाती है. इसका एक सिरा विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी की तरफ जाता है, दूसरा बाएं को यानी लाल किले की तरफ जाता है, तीसरा दाईं तरफ फांसी घर की ओर जाता है. दिल्ली विधानसभा को लाल किले से जोड़ने वाली इस सुरंग का उपयोग अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों को लोगों की नजरों से दूर लाने ले जाने के लिए किया करते थे.

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दिल्ली विधानसभा में मिले इस सुरंग की जानकारी देते हुए स्पीकर राम निवास गोयल ने बताया कि जब मैं 1993 में विधायक बना, तब लोगों से लाल किले तक जाने वाले सुरंग के बारे में सुना था. मैने इसका इतिहास पता लगाने की कोशिश भी की, लेकिन कुछ स्पष्ट नहीं हुआ. हालांकि उन्होंने कहा कि वैसे तो अब सुरंग मिल गई है, लेकिन उसे आगे नहीं खोद रहे हैं, क्योंकि मेट्रो परियोजना और सीवर स्थापना के कारण सुरंग के सभी रास्ते बर्बाद हो गए हैं.

विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल कहते हैं कि 1912 से लेकर 1926 तक यहां केंद्रीय पार्लियामेंट थी. इसके बाद यहां ब्रिटिश हुकूमत की अदालत चलती थी.

लोग जानेंगे दिल्ली विधानसभा के 109 साल का इतिहास

दिल्ली विधानसभा के 109 साल का इतिहास अब एक फिल्म के माध्यम से लोग देख सकेंगे. ये फिल्म नेहरू तारामंडल की तर्ज पर तैयार होगी. इसके तहत एक थियेटर तैयार किया जाएगा, जिसमें फिल्म चलेगी. दिल्ली विधानसभा के दोनों एमएलए लॉन्ज में उन भारतीय नेताओं की फोटो भी लगेगी, जो ब्रिटिश हुकूमत के समय नेशनल पार्लियामेंट के सदस्य थे. इनमें मोती लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय, बिट्ठल भाई पटेल और तेज बहादुर सप्रू जैसे नाम शामिल हैं.

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विधानसभा अध्यक्ष ने फांसी घर की तुलना मंदिर से की. उन्होंने कहा कि यहां स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है.

तैयार होगी डिजिटल गैलरी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1918 और 1931 में यहां आए थे. उनसे संबंधित एक डिजिटल गैलरी और एक फिल्म भी तैयार की जाएगी.