रायपुर। छत्तीसगढ़ के कोल ब्लॉक उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनी को दिये जाने का विरोध तेज हो गया है. जंगल-पहाड़ को खनन से बचाने और जीव-जंतुओं के साथ ही अपना घर व आजीविका की रक्षा के लिए आदिवासी लगातार आंदोलन कर रहे हैं. हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले ये अनिश्चितकालीन आंदोलन लगातार जारी है. आंदोलनकारियों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा है. उन्होंने इस पत्र की प्रतिलिपी, केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्री, कोयला मंत्री के साथ-साथ सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिले के कलेक्टरों को भेजा है. जिसमें परसा कोल ब्लॉक हेतु ग्रामसभा की पूर्व सहमती बिना की गई भूमि अधिग्रहण रद्द करने एवं हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तवित सभी कोल ब्लॉक को निरस्त करने की मांग की है. 

पत्र में ये लिखा है

उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरबा सरगुजा और सूरजपुर जिले की सीमाओं में स्थित हसदेव अरण्य सघन प्राकृतिक वन क्षेत्र हैं जिसमे समृद्ध जैव विविधता, हाथियों सहित कई महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास व मैग्रेटरी कॉरिडोर हैं. यह हसदेव बांगो बैराज का केचमेंट हैं भी जिससे प्रदेश की लगभग 4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती हैं. इस सम्पूर्ण वन क्षेत्र पर आदिवासियों व परम्परागत वन निवासियों की संस्कृति और आजीविका निर्भर हैं. इन्ही विशेषताओं के कारण सम्पूर्ण हसदेव अरण्य को वर्ष 2009 में “केंद्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय” ने खनन के लिए NO GO क्षेत्र घोषित किया था. वर्ष 2011 में तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस क्षेत्र में 3 कोल ब्लॉक तारा, परसा ईस्ट,केते बासन को यह कहते हुए सहमती दी थी कि इसके बाद हसदेव अरण्य में किसी अन्य खनन परियोजना को स्वीकृति प्रदान नही की जाएगी. हालांकि वर्ष 2014 में माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सुदीप श्रीवास्तव की याचिका पर निर्णय देते हुए परसा ईस्ट केते बासन की वन स्वीकृति को भी निरस्त कर दिया.

पत्र में आगे लिखा है, दिनांक 30 जून 2011 में मोरगा 2 कोल ब्लॉक की स्वीकृति के संबंध में तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि मुख्य हसदेव अरण्य में अब किसी भी कोल ब्लॉक को पर्यावरणीय स्वीकति नहीं दी जा सकती. वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार ने हसदेव अरण्य के नो गो प्रावधान को दरकिनार करते हए खनन परियोजनाओ को स्वीकति देना शुरू कर दिया. जिससे प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण वन क्षेत्र के विनाश का रास्ता शुरू हुआ. कोल ब्लॉक्स का आवंटन नीलामी केन्द्रीय सरकार दवारा अवश्य किया जाता हैं, परन्तु वन एवं पर्यावरण स्वीकृति की प्रक्रियाए चलाना, भूमि अधिग्रहण आदि की कार्यवाहियां राज्य सरकार दवारा सम्पादित की जाती. इन प्रक्रियाओं को चलाते समय, वन संपदा, जल स्रोत, जीव जंत, पर्यावरण, लोगो की आजीविका और संस्कृति पर प्रभाव को देखना उनसे संबंधित अनापत्ति पत्र जारी करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं. भूमि अधिग्रहण और वन स्वीकृति के पूर्व पेसा कानून 1996 और वनाधिकार मान्यता कानून 2006 का पालन और ग्रामसभाओ की सहमती/असहमति के प्रस्ताव को लेना कानूनन अनिवार्य हैं. छत्तीसगढ़ में पिछले 15 वर्षों के अनुभव रहे हैं कि इन प्रक्रियाओ को न सिर्फ नजरअंदाज किया गया बल्कि कार्पोरेट के दवाब में उनका उल्लंघन करते हुए राज्य के हितों से भी समझोता किया गया जिसके गंभीर दुष्परिणाम हमारे समाने हैं.

यह है मांग

पत्र में आगे लिखा है कि आपके नेतृत्व वाली वर्तमान राज्य सरकार से अपेक्षा हैं की आप प्रदेश में पूर्व से चल रही इस उधोगिक आतंक और निरुन्कुश्ता पर अंकुश लगाते हुए राज्य के हितो का ध्यान रखेंगे. जल जंगल जमीन पर निर्भर समुदाय की आजीविका, संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण करेंगे इसी उम्मीद के साथ हम हसदेव अरण्य क्षेत्र के खनन प्रभावित समस्त ग्रामवासी निम्न बिन्दुओं पर यह मांग पत्र आपको सादर प्रेषित हैं-

  • परसा कोल ब्लाक हेतु साल्ही, हरिहरपुर एवं फतेहपुर ग्राम की भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया निरस्त की जाये- सरगुजा व सूरजपुर जिला संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल हैं. इन क्षेत्रों लागू पेसा कानून 1996 के अनुसार भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के पूर्व ग्रामसभा की लिखित सहमती आवश्यक हैं. प्रस्तावित परसा कोल ब्लाक हेतु तीन गाँव की भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही ग्रामसभा स्वीकृति लिए बिना ही संपादित कर दी गई, जो कि पेसा कानून 1996 एवं भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवास्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 41 की उपधारा (3) का खुला उल्लंघन हैं. अतः तत्काल इस भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द किया जाये.
  • परसा कोल ब्लाक हेतु स्टेज 1 वन स्वीकृति को निरस्त कर वनाधिकार कानन के उल्लंघन की जाँच की जाये-  वनाधिकार मान्यता कानून 2006 की धारा 4(5) एवं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय का दिनांक 30 जुलाई 2009 का आदेश है कि किसी भी वन भूमि के डायवर्सन के पूर्व वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति की घोषणा एवं ग्रामसभा की लिखित सहमती आवश्यक हैं. परियोजना प्रभावित गाँव साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर एवं घाट्बर्रा गांव में अभी भी व्यक्तिगत एवं सामदायिक वन संसाधन के अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया लंबित हैं एवं ग्रामसभाओं ने भी विधिवत सहमती भी प्रदान नहीं की है. अतः स्टेज 1 स्वीकृति को निरस्त करने कार्यवाही की जाये.
  • पतुरिया, गिदमड़ी एवं मदनपर साऊथ कोल ब्लाको की पर्यावरण, वन स्वीकृति एवं भमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए – हसदेव अरण्य की 20 ग्रामसभाओ ने वर्ष 2015 में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर कोल ब्लॉक के आवंटन /नीलामी का विरोध किया था, जिसके प्रस्ताव प्रधानमंत्री और तत्कालीन मुख्यमंत्री को सोंपे गए थे. ग्रामसभाओं के विरोध को दरकिनार कर हसदेव अरण्य में 5 कोल ब्लॉको का आवंटन किया हैं जो कि संविधान की पांचवी अनुसूची एवं पेसा अधिनियम के विपरीत हैं. अतः पतुरिया, गिदमुड़ी एवं मदनपुर साऊथ कोल ब्लॉक की पर्यावरण, वन स्वीकृति एवं भूमि अधिग्रहण हेतु चल रही सभी प्रक्रियाओं पर तत्काल रोक लगाई जाएँ.
  • पतुरिया गिदमुड़ी कोल ब्लॉक जिसका आवंटन छत्तीसगढ़ पावर जनरेशन कम्पनी को हआ हैं के द्वारा अडानी कम्पनी के साथ किये गए mdo (माइंस डेवलपर कम ऑपरेटर) खत्म किया जाए.
  • सम्पूर्ण हसदेव अरण्य में खनन पर प्रतिबन्ध लगाते हुए कोल ब्लॉक्स के आवंटन पर प्रतिबन्ध लगाया जाए.