दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें राजधानी के ग्रामीण इलाकों में पंचायत राज व्यवस्था लागू करने और उसे संचालित करने की मांग की गई है। यह याचिका अखिल भारतीय हिंदू महासभा के पूर्व उपाध्यक्ष सतीश कुमार अग्रवाल ने दाखिल की है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला की बेंच ने केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वे दिल्ली के विधायी इतिहास पर विस्तृत नोट अदालत के सामने पेश करें।
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दिल्ली पंचायत राज अधिनियम 1954 पर सवाल
अदालत ने विशेष रूप से जानना चाहा है कि क्या दिल्ली पंचायत राज अधिनियम, 1954 अभी भी प्रभावी है या फिर बाद के किसी विधायी प्रावधान से निरस्त हो चुका है। कोर्ट ने सरकार के वकील को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई में इस पर स्पष्ट जवाब दें।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि दिल्ली पंचायत राज अधिनियम 1954 अब भी लागू है और इसके संचालन में कोई कानूनी बाधा नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि 1993 के 73वें संविधान संशोधन के बाद पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला और पूरे देश में तीन स्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू हुई, लेकिन दिल्ली में अब तक पंचायतें गठित नहीं हुईं।
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ग्रामीण क्षेत्रों को अधिकारों से वंचित बताया
याचिका में कहा गया है कि इस चूक के कारण दिल्ली के ग्रामीण इलाकों को संवैधानिक रूप से प्रदत्त स्थानीय स्वशासन का अधिकार नहीं मिल पाया है और वे विकास संबंधी सुविधाओं से वंचित हैं। अदालत से आग्रह किया गया है कि वह दिल्ली पंचायत राज अधिनियम, 1954 को लागू करने और संविधान के भाग 9 के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों की स्थापना सुनिश्चित करे।
अगली सुनवाई 10 दिसंबर को
मामले को गंभीर मानते हुए हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 10 दिसंबर तय की है। तब तक केंद्र और दिल्ली सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि दिल्ली में पंचायत राज व्यवस्था लागू करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं और 1954 के अधिनियम की वर्तमान स्थिति क्या है।
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