रायपुर. बच्चों के प्रकृति-प्रदत्त गुणों को विकसित करना, उनके नैतिक गुणों को पहचानना और सँवारना, उन्हें सच्चे ईमानदार और उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठावान नागरिक बनाना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है. हर बालक अनगढ़ पत्थर की तरह है जिसमें सुन्दर मूर्ति छिपी है. व्यक्तित्व-विकास में वंशानुक्रम और परिवेश दो प्रधान तत्व हैं.

वंशानुक्रम व्यक्ति को जन्मजात शक्तियाँ प्रदान करता है. परिवेश उसे इन शक्तियों को सिद्धि के लिए सुविधाएँ प्रदान करता है. बालक के व्यक्तित्व पर सामाजिक परिवेश प्रबल प्रभाव डालता है. जैसे -जैसे बालक विकसित होता जाता है, वह उस समाज या समुदाय की शैली को आत्मसात् कर लेता है, जिसमें वह बड़ा होता है और यही उसके व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ती है.

समाज में जो वातावरण बच्चों को मिल रहा है, वहाँ नैतिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक मूल्यों पर महत्त्व दिया जाता है. जहाँ उसे एक अच्छा और सच्चा इंसान बनने की जगह एक धनवान, सत्तावान समृद्धिवान बनने के लिए प्रेरित किता जाता है, ताकि समाज में उसका एक ‘स्टेटस’ बन सके. माता-पिता भी उसी दिशा में उसे बचपन से तैयार करने लगते हैं. भौतिक सुख-सुविधाओं का अधिक से अधिक अर्जन ही व्यक्तित्व विकास का मानदंड बन गया है.

आज समाज की जरूरत आत्म-संयम, सेवा भावना, कर्तव्यबोध, श्रम, त्याग, समर्पण आदि गुणों से बना सादा जीवन आदर्श नहीं रहा.  आज आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को सही प्रेरणा, सही मार्ग-दर्शन व सही परामर्श के साथ स्वस्थ पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण मिले. वंशानुक्रम और परिवेश दिनों को बेहतर करने की नितांत आवश्कता है.

बच्चे की रूचि को ध्यान में रखते हुए आसपास के परिवेश को उसके अनुकूल बनाना चाहिए और रूचि को समाज हित में बनाये रखने के लिए कुंडली का विश्लेष्ण कराना चाहिए. यदि बच्चे की कुंडली में लग्न, तीसरे, सप्तम, एकादश स्थान में राहू जैसे क्रूर ग्रह हो तो बच्चे का परिवेश सात्विक रखना अत्यंत आवश्यक है.

शराब, सिगरेट या अन्य असामाजिक कार्यो वाले परिवेश में बढ़ता हुआ बच्चा अगर राहू जैसे ग्रही दोष से युक्त होगा तो उसपर प्रभाव भी गलत होगा. इसी प्रकार शुक्र ग्रह इन स्थानों पर हो और उसके आसपास का परिवेश भौतिक वस्तु का दिखावा करने वाला हो तो उसकी कामना अमीर बनने की ही होगी और इसके लिए वह गलत कदम उठा सकता है.

इसलिए बढ़ते हुए बच्चे को आत्म-संयम, सेवा भावना, कर्तव्यबोध आदि गुणों से पूर्ण करने का काम समाज के प्रत्येक नागरिक का है जिससे हमारा समाज नैतिक मूल्यों का मान रख सके.

इसके लिए बच्चो को यज्ञ  मंत्र जाप में शामिल करना चाहिए, समूह के कार्यो में भागीदारी की आदत डालनी चाहिए और अन्न दान करने के लिए प्रेरित करना चाहिए.