रायपुर। कृषिमंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मीडिया सलाहकार देवेंद्र गुप्ता ने गांधी जयंती पर सोशल मीडिया पर एक आलेख जारी किया है. इस आलेख को उन्होंने गांधी जयंती पर एक अभिव्यक्ति, गोडसे तो हथियार थे ट्रिगर किसने दबाया के नाम से लिखा है जिसमें उन्होंने नेहरु को गांधी के हत्या का जिम्मेदार ठहराया है.

देवेंद्र गुप्ता का आलेख हम ज्यों का त्यों जारी कर रहे हैं. ये आलेख लेखक के निजी विचार हैं और इस आलेख की पूरी ज़िम्मेदारी लेखक पर है.

गांधी जयंती पर एक अभिव्यक्ति, गोंडसे तो हथियार थे ट्रिगर किसने दबाया?

    • देवेन्द्र गुप्ता (लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व छात्रनेता है)

 

महात्मा गांधी आज़ादी की लड़ाई के नायक थे। बावजूद गोंडसे ने उनकी हत्या की। गोंडसे को लगता था गांधी जी देश विभाजन के जिम्मेदार है। गोंडसे कोई आतंकी नही था। वो भी देश का भटका हुआ नौजवान था जो यह गंभीर अपराध कर बैठा।

आज गोंडसे मर चुका है। पर देश को आगे बढ़ने से रोकने के लिए हज़ारों गोडसे तैयार किये जा रहे है। इन्हें उन लोगों का संरक्षण है जो कथित तौर पर गांधी की राह पर चलने की बात कहते रहे है। और आज वो लोग गांधी जी के सपनों को साकार करने शिद्दत के साथ जुटे हुए है जिनके माथे गांधी हत्या का कलंक जबर्दस्ती लगाया जाता रहा है।

इतिहास भी इस बात की गवाह है कि आज़ादी के बाद से लेकर अब तक के हर दौर में, जो भी कांग्रेसी राजनैतिक नेतृत्व को चुनौती देने की कोशिश करता या उससे ऊंचा उठता दिखा, उसकी संदेहास्पद मृत्यु हो गई। “जय जवान -जय किसान” का नारा देने वाले किसान पुत्र लालबहादुर शास्त्री जी की मृत्यु एक उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। आज़ादी के तात्कालिक बाद सिर्फ महात्मा गांधी ही एक ऐसे नेतृत्व थे जिनकी हर बात पत्थर की लकीर थी। वो जैसा चाहते देश उस दिशा में बढ़ता।

परंतु नेहरू जी की महत्वाकांक्षा गांधी जी की सोच में रोड़ा थी। गांधी जी भांप चुके थे कि नेहरू परिवारवाद की नींव रखने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में अगर आज़ादी के 5 महीने बाद ही गांधी जी की मृत्यु हो जाए तो उसके राजनैतिक मायने क्यों नही निकाले जा सकते?

संघ के स्थापना करने वाले उस दौर के प्रभावशाली डॉ.हेडगेवार जी स्वयं कांग्रेसी थे। वे गांधी जी के विचारों का अनुसरण करते थे। यह भी सही था कि वे विभाजन के विरोधी थे और अखंड भारत के लिए संकल्पित। वे भारत की संस्कृति और श्रेष्ठ परंपराओं  को आगे बढ़ाने की सोच रखते थे। यही सोच उन्होंने संघ को भी दिया था। यही एक कारण था कि पश्चमी संस्कारों में पले-बढ़े और अपने चाल-चरित्र और चेहरे बेनकाब होते नेहरू ने संघ को निशाने पर ले रखा था। संघ की बढ़ती शाखायें भी उनके लिए चिंता का सबब बन गई थी।

संघ की राष्ट्रवादी सोच से लोग तेजी के साथ जुड़ने लगे थे। गांधी जी की हत्या करवाने वाले ने एक तीर से कई निशाने साध लिए। संघ के माथे पर झूठा कलंक लगा दिया और राष्ट्रपिता की हत्या कर वह कथित राजनैतिक पुत्र निश्चित होकर वर्षो तक सत्ता पर काबिज रहा जब तक उसकी मृत्यु भी  STD (सेक्सुअल ट्रांसमिटिड डीसीज़ ) से नही हो गई।

एक दौर यह भी आया जब नेहरू को लगा कि संघ को साथ लेना जरूरी है तब उन्होंने दिखावे के लिए संघ को गले लगाया और स्वतंत्रता दिवस परेड में हिस्सा लेने का अवसर दिया था। परंतु संघ ने अपने संरक्षण में कांग्रेस के विकल्प के तौर पर जनसंघ के रूप एक राजनैतिक् संगठन खड़ा किया जो राष्ट्रवादी था। आज वही संगठन भारतीय जनता पार्टी के रूप में आपके सामने है।

और यह संगठन राष्ट्रवादी सोच के साथ देश का नेतृत्व करते हुए महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने के लिए काम कर रहा है।