संजीव शर्मा, कोंडागांव। एक ओर जहां अवैध कटाई की वजह से वनों का क्षेत्रफल दिनों-दिन घट रहा है. वनों के विनाश के रोकने में जहां वन विभाग नाकाम साबित हो रहा है, वहीं ग्रामीणों की आस्था की वजह से गांव में जंगल बचे हुए है. जिस जंगल में ‘देवगुड़ी’ स्थापित हो गई, वहां के पेड़ भी देव स्वरूप हो जाते हैं. ग्रामीणों की इसी अटूट आस्था की वजह से पूर्वजों के द्वारा ग्रामदेवी के मंदिरों के सामने लगाए गए वृक्ष आज भी सुरक्षित हैं.

बस्तर के प्रत्येक गांव में ‘देवगुड़ी’ होती है, जहां पर ग्रामीण विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. जिस स्थान पर ‘देवगुड़ी’ (मंदिर) होता है, उस स्थान पर पूर्वजों द्धारा लगाए गए पेड़ हैं. इन पेड़ों को काटना या लकड़ी की चोरी करना अशुभ माना जाता है. आज भले ही पास जंगलों की कटाई हो गई हो, लेकिन इस स्थान पर लगे पेड़ों को देवता का दर्जा मिला हुआ है. यहां पर लगे वृक्षों पर किसी प्रकार का नुकसान देखने को नहीं मिलता है.

गांव के बजुर्ग रामनाथ, दुकारू, समलू, बुधमन, जगतु व अंधारु बताते हैं कि पूर्वजों ने गांव में खाली पड़े सार्वजनिक स्थलों पर सैकड़ों पेड़ लगाए हैं, और जब तक वे रहे, उन्होंने इन वृक्षों की सुरक्षा की. आज हमारी जवाबदारी है कि ग्राम देवी के सामने लगे इन वृक्षों की रक्षा करें. यही वजह है कि बस्तर के प्रत्येक गांव के ‘देवगुड़ी’ के पास कुछ क्षेत्र में बड़े-बड़े वृक्ष खड़े हैं. आज हम भले ही पेड़ नहीं लगा पा रहे हैं, लेकिन सुरक्षा तो कम से कम कर ही सकते हैं.

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लोक चित्रकार खेम वैष्णव बताते हैं कि इस सभी जगहों को देव कोट के रूप में भी जाना जाता है, जहां ये ‘देवगुड़ी’ स्थापित हो गई, वहां के पेड़ भी देव तुल्य हो जाते हैं. इन पेड़ों को काटना तो दूर इसका छिलका तक नहीं निकाला जाता है.

वन मंडलाधिकारी उत्तम कुमार गुप्ता बताते हैं कि बहुत पुराने समय से ही ‘देवगुड़ी’ के आस-पास के वनों की ग्रामीण देव तुल्य मानते हैं. हम भी ऐसी देवगुड़ियों में ग्रामीणों की सहमति से कैम्पा के माध्यम से शेड बनाने के साथ घेरा करने का काम कर रहे हैं.

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