कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस मनाया जाता है. धन्वंतरी की पूजा जानिए क्यों जरूरी होती है?
रायपुर. समुद्र मंथन के बाद भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए थे. तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था इसलिए इस दिन धातू से जुड़े बर्तन या आभूषण खरीदने का चलन निकल पड़ा. मान्यता है कि इस दिन खरीददारी करने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है. इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं.
दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं. धन्वंतरी आयुर्वेद के चिकित्सक थे, जिन्हें देव पद प्राप्त था. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार थे और इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था. शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था. इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस मनाया जाता है.
धनतेरस का महत्व:
- इस दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है. शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ सात धान्यों की पूजा की जाती है. सात धान्य में गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर शामिल होता है.
- धनतेरस के दिन चांदी खरीदना शुभ माना जाता है.
- भगवान धन्वन्तरी की पूजा से स्वास्थ्य और सेहत मिलता है. इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं.
धनतेरस के दिन क्या करें :
- इस दिन धन्वंतरि का पूजन करें.
- नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करे.
- सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को श्रृंगारित करें.
- मंदिर, गोशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं.
- यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन और जेवर खरीदना चाहिए.
- हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें.
- कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआँ, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं.
भगवान धन्वंतरी की चार भुजायें हैं जिसमें ऊपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुए हैं, जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं. इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है. इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है. इन्हें आयुर्वेदिक चिकत्सक वाला देवता माना जाता है. इन्होंने कई औषधियों की खोज की थी. इनके वंश में दिवोदास भी हुए और उन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया था और इसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे. उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखा था और सुश्रुत को विश्व का पहला सर्जन माना जाता है.