बैकुंठपुर। जिस उम्र में बच्चे हंसते-खेलते दुनिया को जानना शुरु करते हैं. उसी उम्र में कोरिया जिले में दो मासूम बच्चे अपनी जिदंगी बचाने की गुहार लगा रहे हैं. जिले के आदर्श ग्राम बुढ़ार निवासी एक मासूम ने अपनी जिन्दगी बचाने जदोजहद कर रहा है तो मुख्यालय में रहने वाली आंचल प्रदेश के मुखिया से बेहतर उपचार की अपील कर रही है.

5 साल की उम्र में रितिक की हालत ऐसी है कि न तो वो बिस्तर से उठ सकता है और न बैठ सकता है चलने फिरने और खेलने की बात ही दूर है. माता पिता की गोद इस नन्हे के लिये जन्नत है. जब कहीं परिजन जाते हैं तो इसे गोद मे उठा कर ले जाते हैं. घर पर तो ये सिर्फ बिस्तर में ही पड़ा रहता है भूख लगती तो यह बोल भी न पाता. परिजन आँखो में आँसू देखते है तो समझ जाते हैं कि इसे भूख लगी है. परिजन चाहते है कि बाकी अन्य बच्चों की तरह रितिक भी हँसे खेले और पढ़े. लेकिन रितिक के गरीब मां बाप उसका ईलाज कराने में सक्षम नहीं है.

कुछ ऐसी ही कहानी बैकुण्ठपुर मे रहने वाली दस वर्षीय मासूम आंचल की है. आंचल जन्म के समय अन्य बच्चो की तरह थी. हमेशा खेलती मुस्कुराती आंचल से पूरे घर में रौनक रहती. लेकिन एक दिन आंचल की खुशियों को ऐसा ग्रहण लगा कि वह चलने फिरने तक के लिए मजबूर हो गई. कुछ दिनों पहले उपचार के लिए रायपुर ले जाया गया. लेकिन डाक्टरों ने अपने हाथ खडे कर दिये. अब आंचल के परिजनों को बेहतर उपचार के लिए प्रदेश के बाहर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में उपचार की जरूरत है.

इस मामले में स्वास्थ्य विभाग की बडी लापरवाही भी उजागर हुई है. जिले का स्वास्थ्य अमला घर-घर जाकर दिव्यांग बच्चों की तलाश करता है. इन बच्चों को चिन्हित करने के बाद उन्हें उपचार के लिए चिरायु योजना के माध्यम से व्यवस्था की जाती है. लेकिन चार साल के रितिक के मामले में उसके परिजन बताते हैं कि आज न तो रितिक का कोई कार्ड बना है. और न तो कोई पहल ही हुई. जिसके चलते आज तक रितिक का उपचार ही शुरू नहीं हो पाया. अब इन दोनों मासूमों के परिजन प्रदेश के मुखिया की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं कि वे उनके उपचार के लिए पहल करें ताकि रितिक और आंचल भी अन्य बच्चों की तरह अपने कदमों से दुनिया नाप सकें.